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सखि यदि वो तुमसे कहने आते

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 2 min read

Updated: Aug 12, 2022


सिद्धार्थ गौतम ने मानवीय पीड़ा से पीड़ित हो कर एक रात्रि को राजमहल, पिता शुद्दोधन, माँ माया, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल का परित्याग कर के वन की ओर प्रस्थान किया मानवीय पीड़ा के मूल और उन्न्मूलन के विषय में ज्ञान प्राप्ति के लिये। जब यशोधरा को ये विदित हुआ कि गौतम बिना कुछ कहे और बिना किसी को सूचित किये सबका त्याग कर के चले गये हैं, तो उसने अपनी सखी से उलाहना की कि "सखि वे कह कर जाते"। यशोधरा के इन उद्गारों को श्री मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचना "सखि वे मुझसे कह कर जाते " में प्रस्तुत किया है। "सखि वे मुझसे कह कर जाते" http://kavitakosh.org/ पर (अवश्य) पढ़ें।


यशोधरा के इस अभियोग के प्रत्युत्तर में उस सखि ने क्या कहा होगा? इसको मैंने अपनी इस कविता "सखि यदि वो तुमसे कहने आते" में व्यक्त करने का प्रयास किया है:

 

सखि यदि वो तुमसे कहने आते


मात्र मानव थे कोई बुद्ध तो नहीं,

अश्रुपात का वार क्या ह्रदय पर सह पाते?

हे सखि, यदि वो तुमसे कुछ कहने आते।


अधरों का चुंबन, यौवन का सम्मोहन,

इस रूप का आमंत्रण ठुकरा, क्या पलट कर जा पाते?

हे यशोधरा, यदि वो तुमसे एक पल को मिलने आते।


शिशु राहुल का निरीह क्रंदन, गोदी को आतुर हाथों का कंपन,

पितृ हृदय को विचलित कर जाते, वो मुँह मोड़ न पाते।

सखि यदि वो तुमसे कहने आते, स्वयम को पुनः असहाय ही पाते।


यदि वो कहने आते, व्यक्त किये उन्माद क्या उनके मन को भाते?

दशा तुम्हारी देख वस्तुतः स्वयम के निर्णय पर पछताते।

संशय के नीरद छा जाते, यदि वो कुछ कहने को आते।


रण में जाने की अनुमति दे देती हो, पर रण और इसमें अंतर है,

रण का निश्चित परिणाम पुनः आगमन की एक आस हैं लाते।

अब न लौटूँगा, क्या ये शब्द तुम्हारे मन को भाते?


यशोधरा, सत्य कहो, स्वार्थ ग्रसित हृदय क्या समर्पण भाव को लाते,

या विच्छेद भाव के भय से मात्र विरह गीत ही गाते?

आसक्ति तुम्हारी क्या गौतम को मोह जाल में न उलझाते?


संताप तुम्हें कि प्रस्थान पूर्व गौतम ने क्यों पीड़ा न कही,

पीड़ा का कारण उपेक्षा नहीं, अपेक्षा जो हम तुम में बसी।

हे सखि, यदि वो कह कर भी जाते, अपेक्षा तदापि शोक भाव ही लाते।


कटु सत्य प्रिये यदि बोलूँ मैं, नाम-मात्र सिद्धार्थ ही रह जाते,

सिद्धार्थ* कदापि न कर पाते, यदि वो तुमसे मिलने आते,

मात्र गौतम ही रह जाते, गौतम बुद्ध न वो बन पाते।


****

- अतुल श्रीवास्तव

 

* सिद्धार्थ: सिद्ध (Prove. Can be used for Achieve/ Accomplish) + अर्थ (meaning. Can be used for goal) - One who achieves his goal.

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-अतुल श्रीवास्तव

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