नर्तकी (Northern Lights - Aurora Borealis)
- अतुल श्रीवास्तव
- Jan 19, 2024
- 1 min read
Updated: Feb 5, 2024

जब सूनी साँझ ढले पर न शीतल लंबी रात कटे,
मंद पवन संग नभ से श्यामल मेघों का झुंड छटे,
तब ओ वनिता तुम साड़ी में सज्जित हो आ जाना,
लहराते हरियाले पल्लू से मेरा तन-मन सहला जाना।
धवल धरा की चादर पर लेटा हूँ मैं एक आस लगाये,
बाट जोहता मैं व्याकुल, तेरे नर्तन की जो दीप्ति जगाये,
बन तूलिका आ कर, सूखे नभ में रंगों की गंगा बिखराओ,
इस एकाकी निर्जन प्रांगण में कुछ क्षण की प्रणयी बन जाओ।
अधखुले कपाट की झिर्री से देखा तुमको कल साँझ ढले,
लज्जा थी क्या कि चले गये बिन मेरी चौखट का दीप जले,
अनुनय मेरा फलदायक, तुम छेड़ रही संकेतों का बाना,
है अनुरोध तुम ज्योतिमय हरित साड़ी ही पहन कर आना।
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: थिरुअनंतपुरम, केरल, भारत]
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