भ्रमर
- अतुल श्रीवास्तव
- Feb 4, 2024
- 1 min read
Updated: Jun 11, 2024

जा नटखट भँवरे मैं तोसे अब न बोलूँ,
अब और न हिय के भेद मैं खोलूँ|
यौवन के मकरंद का पिपासु, तोहे कहती सारी सखियाँ,
हिय न माने पर कैसे झुठलाऊँ जो देखें मोरी अखियाँ|
मिश्री मीठी तोरी बतियाँ, पर अब लागे मोहे झूठी,
ताना दें मोरी सखियाँ, सजन जा मैं तोसे रूठी|
मन मोहित करें छल तिहारे, मादक और अनूठे,
मलिन भई प्रेम भावना, पाया तोरे अधरों के प्याले जूठे|
तोरे भ्रमर गीत जो मोहे अपने लागे, मन को भाते,
गीत वही अधरों पर ले क्यों मोरी सखियों पर मंडराते|
तोरी बतियाँ झूठी, गीत भी झूठे और झूठी नैनों की भाषा,
भ्रमर-पाश में भ्रमित रही मैं, खंडित भई मोरे प्रेम की आशा|
व्यर्थ उलाहना, ज्ञात मोहे भी, तोहे विधि और सृष्टि ने भरमाया,
संभव न कोई परिवर्तन, विधि ने ही मोहे तोरे प्रेमपाश में उलझाया|
जा नटखट भँवरे मैं तोसे कैसे न बोलूँ?
मकरंद: शहद
पिपासु: प्यासा, पीने को इच्छुक
हिय: हृदय
पाश - जकड़ में
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: क्लीयर लेक, कैलीफोर्निया]
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