श्याम स्तुति
- अतुल श्रीवास्तव
- May 19, 2020
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Updated: Aug 12, 2022

वर्ण विभिन्न विस्तृत वसुधा पर, पर सखि मोहे श्याम रंग ही भायो,
तू समझे मैं हो गई बावरी हर पल क्यों श्याम श्याम गुण गायो।
भानु प्रकोप तृष्णा सुलगाये, धरणी बिन जल जब जल जल जाये,
धवल मेघ मारुत संग इतराये, सखि ये काले घन ही मेंह बरसाये।
भोर भये नभ हो सिंदूरी, सखि पुरवैय्या जब जल थल लहराये,
उषा काल को काली कोयलिया कुहू कुहू कर जियरा बहलाये।
मैं मृग नयनी, सुंदर बाला, मोरा गोरा वदन सबका मनवा ललचाये,
सखि, कपोल पर ये काला टीका सब निंद्य नयनों से मुझको हर लाये।
सखि प्रियतम जब कोपित हो जायें, भ्रमर समान यहाँ वहाँ मंडरायें,
मोरे काले लोचन बाण चला पिय को सम्मोहित कर खींच ले आयें।
पूर्णिमा का चंचल चंदा कांति दिखाने अम्बर में उड़ उड़ जाये,
यदि श्याम निशा न हो ए सखि तो विधु का रजत रूप कैसे दिख पाये।
जब श्याम, श्याम संध्या को मोरे काले कुंतल में आ छुप जायें,
मोरा गौर वदन काले कुंतल नभ का तेजमयी शशि बन लज्जाये।
समझ गई क्यों मोहे श्याम रंग ही भायो, क्यों मैं श्याम श्याम गुण गायो,
भिन्न रंग जब होयें समाहित, सत्य यही, तबहूँ श्याम रंग बन पायो।
सखि मोहे बस श्याम रंग ही भायो।
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- अतुल श्रीवास्तव
स्तुति: प्रशंसा
धरणी: पृथ्वी
धवल: श्वेत
मारुत: वायु, हवा
घन: बादल
मेंह: वर्षा
वदन: चेहरा
कपोल: गाल
निंद्य: खराब, अशुभ
कोपित: नाराज़
भ्रमर: भंवरा
लोचन: नैन, आँख
कांति: चमक
विधु: चाँद
रजत: चाँदी
शशि: चाँद
समाहित: एक ही केंद्र में इकट्ठा किया हुआ या एक स्थान पर लाया या आया हुआ
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