मित्र?
- अतुल श्रीवास्तव
- Mar 14, 2022
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Updated: Mar 29, 2024

मैं जो सुनना चाहूँ, प्रिय तुम मात्र वही बोलो,
यदि सखा हो, तो तर्क-वितर्क का द्वार न खोलो।
शाश्वत सत्य वही जो मेरे अंतर को सहलाये,
सहमत न हूँ, तो वह दुर्दांत असत्य कहलाये।
क्या अनुचित, क्या उचित, व्यर्थ ये चिंतन है,
मेरी धारणा तर्कसंगत, बाकी योग्य हनन है।
पूर्वाग्रह का कवच पहन इंद्रधनुष सराहूँ कैसे,
एक ही हो धर्म, भाषा और विचार हों एक जैसेl
मत उपदेश मुझे तुम बाँचो, करता करबद्ध प्रार्थना,
कुटिल लगे मुझको यह अंगीकरण की अवधारणा।
न्यायसंगति के तर्कों से न मुझको प्रक्षोभित करना,
बस मैं न्याययुक्त, मुझको अब कुछ और न सुनना।
नदिया के प्रचण्ड प्रवाह विपरीत न टिक पाओगे,
मानवता के अतिरिक्त, सभी के द्रोही ही कहलाओगे।
आगाह करूँ सखा, कटुता का विष तुम मत घोलो,
क्या यह दुष्कर है जो मैं चाहूँ, तुम बस वह बोलो?
दुर्दांत: क्रूर, हिंसक
हनन: वध करना
पूर्वाग्रह: पहले से बनाई हुई (गलत) धारणा
अंगीकरण: स्वीकार करना (acceptance)
अवधारणा: विचार, खयाल (thought)
प्रक्षोभित: उत्तेजित, उकसाना
दुष्कर: कठिन
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: मेरिदा, मेक्सिको]
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