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महानायक - चन्द्रगुप्त मौर्य!

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 2 min read

Updated: Aug 12, 2022


ईश्वर की कृति वो कृती भी था,

उड़ते अलि का वो आली भी था,

अश्म का अश्व नहीं,

वो अनल भी था और अनिल भी था,

वो समर्थ भी था, उसमें सामर्थ्य भी था,

तृप्त तो था पर तप्त भी था,

वो चक्रवाक एक चक्रवात भी था,

कटिबंध बाँधे सदा कटिबद्ध भी था,

वो नेकु नेक था, वो पुरुष तनिक परुष भी था,

अपकार के बदले उपकार ही करता,

अपचार नहीं बस उपचार ही करता,

परिणाम के परिमाण को परे हटा,

नित दिन दीन की सेवा करता ,

मात्र मातृ की वो सुधी सुधि करता,

कर्म के क्रम में बंधा हुआ,

धरा की धारा में खड़ा हुआ,

मद्य के मद से वो दूर हटा,

ललित ललिता के प्रणय, परिणय को छोड़ चुका,

वस्तु,वास्तु,बदन,वदन वसन,व्यसन से मोह तुड़ा,

वो सूर नहीं एक शूर ही था,

भुवन ही भवन ये उसका था,

विशाल कूट ही कुट उसका था,

ग्रह का वरदान गृह उसके था,

वो एक उपेक्षा जिसकी अपेक्षा न थी,

उसके वक्ष पर वृक्ष भाँति गिरी,

चिर चीर समान क्लांति त्याग कर क्रांति करी,

तरंग के तुरंग पर,तरणि के तरणी पर पेंग भरी,

पाणि में पानी भर संकल्प किया,

हय पर सवार हो हिय से शंखनाद किया,

हर प्रकार से प्राकार का सर्वनाश किया,

निर्जर समान उन्नति का निर्झर बना,

इतिहास के सर्ग में स्वर्ग को वसुधा पर रचा,

निर्माण किया,निर्वाण मिला,

वो महानायक आमरण भारत का आभरण बना।


***

- अतुल श्रीवास्तव


कृति=रचना

कृती=निपुण

अलि=भ्रमर

आली=सखी

अश्म=पत्थर

अश्व=घोड़ा

अनल=आग

अनिल=वायु

समर्थ=सक्षम

सामर्थ्य=शक्ति

तृप्त=संतुष्ट

तप्त=गरम

चक्रवाक=चकवा

चक्रवात=बवंडर

कटिबंध=कमरबंध

कटिबद्ध=तैयार

नेकु=तनिक

नेक=अच्छा

पुरुष=आदमी

परुष=कठोर

अपकार=बुरा करना

उपकार=भला करना

अपचार=अपराध

उपचार=इलाज

परिणाम=फल

परिमाण=वजन

दिन=दिवस

दीन=दरिद्र

मात्र=केवल

मातृ=माता

सुधी=बुद्धिमान

सुधि=स्मरण

कर्म=काम

क्रम=सिलसिला

धरा=पृथ्वी

धारा=प्रवाह

मद्य=मदिरा

मद=मस्ती

ललित=सुंदर

ललिता=गोपी

प्रणय=प्रेम

परिणय=विवाह

वस्तु=चीज

वास्तु=मकान

बदन=देह

वदन=मुख

वसन=वस्त्र

व्यसन=नशा

सूर=अंधा

शूर=वीर

भुवन=संसार

भवन=घर

कूट=पर्वत

कुट=घर,किला

ग्रह=सूर्य,चंद्र..

गृह=घर

उपेक्षा=निरादर

अपेक्षा=उम्मीद

वक्ष=छाती

वृक्ष=पेड़

चिर=पुराना

चीर=वस्त्र

क्लांति=थकावट

क्रांति=विद्रोह

तरंग=लहर

तुरंग=घोड़ा

तरणि=सूर्य

तरणी=नौका

पाणि=हाथ

पानी=जल

हय=घोड़ा

हिय=हृदय

प्रकार=तरह

प्राकार=किला

निर्जर=देवता

निर्झर=झरना

सर्ग=अध्याय

स्वर्ग=एक लोक

निर्माण=बनाना

निर्वाण=मोक्ष

आमरण=मृत्युपर्यंत

आभरण=गहना


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-अतुल श्रीवास्तव

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