प्रथा
- अतुल श्रीवास्तव
- Jun 20, 2022
- 2 min read
Updated: Mar 29, 2024

पच्चीस या तीस वर्ष पूर्व रानीगंज के छोटे से शहर में सरिता अपने पति रमाकांत चौबे, अपनी तीन वर्षीय पुत्री रीति और एक छोटी सी बिल्ली मुनिया के साथ रहती थी| रमाकांत शहर के एक बैंक में अधिकारी थे और सरिता संभालती थी घर, रीति और मुनिया को|
सरिता बाल अवस्था से ही अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थी| हर दिन का प्रारंभ पूजन, वंदना और अर्चना से ही होता था| बिना कोई नागा किये सरिता हर ब्रहस्पतिवार को निराजल व्रत रखती थी और उस दिन घर के मंदिर में आधे घंटे का पाठ भी करती थी| पर समस्या यह थी कि उसकी बिल्ली मुनिया उतने ही समय में उछल कूद कर के घर का तहस-नहस कर देती थी| सरिता के पाठ और पूजन में कोई विघ्न न पड़े इसके लिये उसने एक सरल सा उपाय निकाल लिया| पूजन प्रारंभ से पूर्व सरिता मुनिया को पकड़ कर अपने बगल में बैठा कर उसके ऊपर एक डलिया उलट कर रख देती थी| और इस प्रकार सरिता पूजा समाप्त होने तक डलिया में कैद मुनिया के उपद्रव से सुरक्षित हो जाती थी| सरिता के साथ पूजन में बैठती थी नन्ही रीति| जो सरिता कहती उसे रीति करती, और जो सरिता करती उसे अत्यंत ध्यान से देखती - बिना कोई प्रश्न किये |
अब रीति स्वयं एक नन्ही सी बच्ची की माँ है| उसकी तीन वर्षीय पुत्री का नाम है प्रथा| रीति भी अपनी माँ सरिता की भाँति हर ब्रहस्पतिवार को निराजल व्रत रखती है| पर रीति की समस्या यह है कि उसके पास कोई बिल्ली नहीं है| अतः पूजा और पाठ से पूर्व वह बगल में रहने वाली मंजरी से उसकी बिल्ली माँग कर ले आती है| बिल्ली को अपने बगल में बैठा कर उसको डलिया उलट कर ढकती है और प्रारंभ करती है पूजा| रीति से साथ पूजन में बैठती है प्रथा| जो रीति कहती है उसे प्रथा करती है, और जो रीति करती है उसे अत्यंत ध्यान से देखती है प्रथा - बिना कोई प्रश्न किये |
****
- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: कोलाराडो में कहीं]
Comentarios