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पसोपेश

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Aug 25, 2022
  • 4 min read

Updated: Mar 29, 2024



मार्च का आखिरी हफ्ता शुरू हो गया था| हवा में तैरती ठंड भी हवा होने लग गई थी और मुर्गों ने भी सुबह सुबह बाँग देनी फिर से शुरू कर दी थी| मुर्गे बाँग देना शुरू करें उससे पहले ही हर रोज़ की तरह तौकीर अहमद खटिया छोड़ कर दिन की शुरुआत करने में लग गये| उठ कर कुल्ला मंजन किया और फिर बिना नागा किये हर रोज़ की तरह वुदू कर के फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी| नमाज़ अदा करने के बाद खुद को आईने में निहारते हुए अपनी लंबी लहराती दाढ़ी को दुरुस्त किया, सर पर छोटी गोल टोपी को टिकाया और निकल पड़े रोज की तरह सुबह सुबह गुलाब बाड़ी में टहलने के लिये|


घर के बाकी के लोग अभी भी सोये पड़े थे| तौकीर दबे पाँव घर से निकले, बाहर से दरवाजा भेड़ा और पहुँच गये सामने वाले जनार्दन दूबे के घर| दूबे जी के घर के दरवाजे पर अलसाई सी लटकती हुई कुंडी से दरवाजे को धीमे से खटखटाया| रोज की ही तरह फटाक से दरवाजा खुला और दूबे जी प्रकट हो गये - तौकीर मियाँ के साथ सुबह की टहलकदमी के लिये| दूबे जी और तौकीर मियाँ पाँचवी जमात से कालेज तक साथ साथ पढ़े हैं, काफी पुरानी शहद की तरह मीठी और गाढ़ी दोस्ती है| सारा मोहल्ला बातें करता है इन दोनों की दोस्ती की और साथ में इन दोनों की मजहबी भक्ति की| दूबे जी हैं पक्के हिन्दू और बजरंग बली के भक्त, और तौकीर हैं हर रोज़ फ़ज्र, ज़ुहर, अस्र, मग़रिब और ईशा की नमाज़ पढ़ने वाले खालिस मुसलमान|


आज से तकरीबन बारह या तेरह साल पहले तौकीर मियाँ इतने कट्टर मजहबी नहीं थे| कभी कभी जब इंसान परेशानियों से घिर जाता है, हर तरफ से निराश हताश हो जाता है तब ऐसे में अगर ऊपर वाले की फ़रियाद चमत्कार कर दे तो अधिकतर इंसान उसके मुरीद ही नहीं बल्कि उस पर अपनी जान तक निछावर करने को तैयार हो जाते हैं| तौकीर अहमद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था| भरी जवानी के दिनों में तौकीर का निकाह सायरा के साथ हो गया था| तौकीर खुश, सायरा खुश, और सभी दोस्त और रिश्तेदार खुश| पर ये खुशी तानों में बदल गई जब शादी के सात साल भी कोई औलाद न हुई| मियाँ बीबी ने अस्पतालों और डाक्टरों के अनेकों चक्कर लगा लिये, हर तरह की दवा और नुस्खे आजमा लिये, पर उम्मीदें कम होती गईं और शर्मिंदगी बढ़ती गई| तौकीर और सायरा पूरी तरह से हताश और निराश हो चुके थे| ऐसे ही नाउम्मीदी के दिनों में तौकीर की मुलाकात हो गई एक बड़े ओहदे वाले मौलवी से| मौलवी साहब ने तौकीर को नसीहत दी कि ऊपर वाले की फ़रियाद ही कोई अजूबा कर सकती है, उसको समझाया कि बिना नागा पाँचों वक्त की नमाज़ पढ़ो, रोजा रखो और एक सच्चे मुसलमान बनो| इसके अलावा तौकीर को कोई रास्ता भी न दिखाई दे रहा था सो मौलवी साहब की नसीहत पर अमल शुरू कर दिया| सात या आठ महीनों के बाद अजूबा हो ही गया, और उसके नौ महीने बाद तौकीर अहमद के घर एक सुंदर से लड़के ने जन्म लिया| सभी के चेहरों पर चमक छा गई, घर में खुशी की रोशनी लहरा गई, और इसी चमक धमक की वजह से लड़के का नाम रखा गया नूर| बस उसी दिन से तौकीर ऊपर वाले का ताबे हो गया| अब नूर दस साल का सलोना लड़का है|


डेढ़ घंटे गुलाब बाड़ी में टहलकदमी करने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने घर वापस आ गये| पर आज तौकीर को बेगम साहिबा दहलीज पर ही मिल गईं, शक्ल से थोड़ा घबराई हुई| तौकीर ने खैरियत पूछी तो रुँधे गले से सायरा ने बताया कि नूर की तबियत नासाज़ है - सुबह से उल्टियाँ कर रहा है| इतनी मिन्नतें, मन्नतें और फ़रियाद के बाद मिले नूर की तबियत थोड़ी भी ढीली होती है तो मियाँ बीबी पर कहर टूट पड़ता है| तौकीर का ऐसी हालत में घबराना लाज़िमी था| तुरंत नूर को लेकर डाक्टर के पास पहुँच गया| डाक्टर ने कुछ दवाईयाँ दीं और तौकीर को समझा कर, कि कोई घबराने की बात नहीं है, घर भेज दिया| पूरे दिन नूर की तबियत में कोई फर्क न पड़ा तो तौकीर दर्जन भर अस्पतालों और डाक्टरों के चक्कर लगा आया|


पूरे तीन दिन हो गये पर नूर की तबियत ढीली ही चल रही थी| डाक्टरों का कहना था कि कोई संजीदा मामला नहीं है, इन्फेक्शन है कुछ दिन में दवा से ठीक हो जायेगा| तौकीर और सायरा को डाक्टरों की बातों से कोई सुकून न मिल रहा था, दोनों मिन्नतें, मन्नतें और फ़रियाद में लग गये| चादरें चढ़ाईं और दुआयें माँगी|


आज छठा दिन था| नूर अभी भी थोड़ी तकलीफ में था| अपनी परेशानी को थोड़ा दूर करने के लिये आज हफ्ते बाद तौकीर सुबह सुबह गुलाब बाड़ी की ओर निकल पड़ा| तौकीर सुबह घूमने जाये और साथ में दूबे जी न हों, ये तो हो ही नहीं सकता| दोनों दोस्त घंटे भर टहलने के बाद एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ गये| दोनों ने पिछले डेढ़ घंटे में एक लफ़्ज़ भी मुँह से न निकाला था| इस झँझोड़ देने वाले सन्नाटे को तोड़ते हुए दूबे जी ने तौकीर से कहा, "तौकीर, मुझसे तुम्हारी परेशानी देखी नहीं जाती है|"


तौकीर ने सहमी हुई आवाज में जवाब दिया, "क्या करूँ? डाक्टरों को तो दिखा ही रहा हूँ| मिन्नतें, मन्नतें और फ़रियाद भी कर रहा हूँ| दुआयें भी माँग रहा हूँ| समझ में नहीं आ रहा है कि अब और क्या करूँ?"


दूबे जी ने दबी हुई आवाज में कहा, "बुरा न मानो तो एक बात कहूँ|"


"तुम्हारी बात का बुरा क्या मानना| क्या बात है?", तौकीर ने जवाब दिया|


दूबे जी ने फिर से सहमी हुई आवाज में कहा, "दो चौराहा छोड़ के हनुमान जी का मंदिर है| बजरंग बली सच्चे मन से माँगी गई सभी की मनोकामना पूरी करते हैं| बुरा न मानो तो मंदिर चल कर एक बार माथा टेक लो| बजरंग बली हमारे नूर को जल्द ही स्वस्थ कर देंगे|"


दूबे जी ने बात खतम करी और एक गहरा सन्नाटा छा गया| दूबे जी तौकीर का चेहरा ताक रहे थे, तौकीर सर ऊपर उठा कर आसमान में कुछ ताक रहा था| तौकीर धीरे से उठा और छोटे छोटे कदमों से खुद को घसीटता हुआ घर की ओर चल पड़ा|


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- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: म्यूर वुड्स, कैलीफॉर्निया]

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-अतुल श्रीवास्तव

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