दुर्दशा
- अतुल श्रीवास्तव
- May 18, 2020
- 3 min read
Updated: Aug 12, 2022

कभी स्वप्न में भी ऐसा भयावह विचार नहीं आया था कि उसका ऐसा हाल हो जायेगा, ऐसी दुर्दशा हो जायेगी | बचपन से ही उसे देखता आ रहा हूँ | उसकी उमर तो उस समय भी अच्छी खासी थी परंतु तब वो इतनी बुढ़िया, थकी माँदी और दयनीय नहीं दिखती थी | गँवार तो वो तब भी दिखती थी पर उसके घर वाले उसे पूरे आदर के साथ सर आँखों पर बिठा कर रखते थे |
दशक बीते और उनके साथ बीती पीढ़ियाँ | और, बदली हुई पीढ़ियाँ अपने साथ लायीं बदले हुये विचार और एक तथाकतिथ प्रगतिशील द्रष्टिकोण | नयी पीढ़ी के युवा सदस्यों को बुढ़िया का गँवारपन सहन नहीं हुआ | ना जाने क्यों, पर उनको ऐसा लगने लगा कि समाज में अपनी एक सम्मानित छवि बनाने के लिये उन्हें इस बुढ़िया से शीघ्र ही छुटकारा पा लेना चाहिये | घर में जब पढ़े लिखे और देश विदेश के सम्भ्रांत लोग आयेंगे तो क्या सोचेंगे हमारे बारे में यदि ये बुढ़िया उनसे टकरा गयी | अतः युवा सदस्यों ने एकाकी मत हो कर ये निर्णय लिया कि बुढ़िया और खास कर के उसके गँवारपन के लिये घर में कोई जगह नहीं है | और बस अगले ही दिन बेचारी बुढ़िया आ गयी सड़क पर - ना कोई घर और ना ही कोई ठिकाना | बुढ़िया ने वो सब तो सहन कर लिया पर बात जो उसके ह्र्दय को छेद गयी वो यह कि उसका आदर और सम्मान कुछ ही क्षणों मे हवा में भाप की तरह विलीन हो गया | इस अपमान के कारण आँखों से अष्रुपात तो नहीं हुआ पर यमराज के दूतों ने हाथ में छड़ी, पीठ पर कूबड़ और चेहरे पर झुर्रियों का रूप लेकर उस बुढ़िया की काया पलट ही कर दी | अपने ही घर और लोगों से ऐसी उपेक्षा, ऐसा अपमान - दुर्बल अवस्था में, जीर्ण शीर्ण कपड़ों में लिपटी हुई ये बुढ़िया अभी भी जीवित है अपने खोये हुये गौरव एवं महिमा को पुनः पाने के प्रयास में | दिन प्रतिदिन दुर्बल होती हुई इस बुढ़िया को काल ने न जाने कब का ग्रसित कर लिया होता, पर अभी भी कुछ लोग हैं जो यदा कदा इस बुढ़िया के देह में शक्ति का घोल उलट देते हैं | अचम्भे की बात तो यह है कि जहाँ शिक्षित सम्मानित लोग हेय द्रष्टि से देख कर उससे दूर भागना चाहते हैं वहीं झोपड़ पट्टी वाले उसकी अवस्था की परवाह बिना किये कभी कभी उसकी सेवा में रत हो जाते हैं | प्रतिदिन देखता हूँ उस दयनीय बुढ़िया को | कभी कभी मन कहता है कि ये वो नहीं हो सकती है जो मेरे विद्यालय के दिनों में बन ठन के रहा करती थी | रंग रूप और काया से तो वो नहीं प्रतीत होती है | आज सुबह सुबह गली में दिख गयी - मैंने सोचा आज उस से नाम पूछ कर इस बात की संतुष्टि कर ही ली जाये कि ये वही बुढ़िया है या कोई और | थोड़ा संकोच के साथ मैं उसके पास गया और धीमे से पूछा, "आपका नाम क्या है?"
उसने कूबड़ को सीधा करने के असफल प्रयास के साथ धरा को ताकती हुई आँखों को ऊपर उठाया और मेरी ओर अचरज से देखा | मैं सोच रहा था कि उसके नेत्र नम और दयनीय से दिखेंगे, पर मुझे उनमें गर्व की झलक दिखाई दी | हाँ वाणी अवश्य दुर्बल थी | उसी दुर्बल वाणी में उस बुढ़िया ने लड़खड़ाते हुये उत्तर दिया, "हिन्दी, मेरा नाम हिन्दी है | " **** - अतुल श्रीवास्तव
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