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चौबे-जी को सिर्फ किशोर कुमार ही क्यों पसन्द है?

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 3 min read

Updated: Aug 12, 2022


मेरे एक अत्यंत घनिष्ठ मित्र हैं जो कि बिहार के रहने वाले हैं | वैसे तो इनका उपनाम चतुर्वेदी है पर प्यार से लोग इन्हें चौबे-जी कहते हैं | स्वभाव से मैं अहिंसावादी हूँ और किसी गायक या गायिका के नाम की दुहाई देकर अखाड़े में कूदना शेखचिल्ली की करतूत मानता हूँ | पर हमारे चौबे-जी ऐसे नहीं हैं | वो तो एक विशेष गायक के धर्मान्ध पुजारी हैं | उस सौभाग्यशाली गायक का नाम हिन्दी वर्णमाला के “क” अक्षर से शुरू होता है और “क” के साथ में एक अदद छोटी “इ” की मात्रा भी लगी होती है | चौबे-जी इस गायक के साथ साथ मिठाईयों के भी बहुत शौकीन हैं | वो मिठाईयों को उसी तरह ललचाई हुई नज़रों से देखते हैं जिस तरह पिरान्हा मछलियाँ दूसरे गायकों के प्रशंसकों को देखती हैं जिन्हें चौबे-जी बस नाँव के छोर से धक्का देने ही वाले होते हैं |


मस्त मौला चौबे-जी से मेरी अक्सर ही मुलाकातें होती रहती हैं | अब पिछले सप्ताह ही चौबे-जी के अंजुमन में महफ़िल जमी उनकी वार्षिक वैवाहिक वर्षगाँठ मनाने के लिये | सभी के लिये “फ़्रिज में लगी ठंडी बियर की बोतलें” खोली गयीं | हाथ में “मिलर लाईट” की बोतलें लिये हम लोग सच्चे “भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान” के सिपाहियों की तरह तकनीकि क्षेत्र में हुई नवीनतम खोजों के बारे में बातें करने लगे , और साथ ही साथ दिखावे के तौर पर हिन्दी फिल्मों में “आईटम सॉंग्स” के प्रचलन को दिल भर के कोसा भी |


मैं पिछले कई हफ्तों से एक विषेश ग्रुप के सदस्यों के बीच छिड़ी किशोर कुमार-मोहम्मद रफी जंग का आनन्द उठा रहा था और चौबे-जी के “कि” गायक के प्रेम ने मुझे इस बात के लिये उकसाया कि इस विषय में चौबे-जी के विचारों को भी जान लिया जाये | तो मैनें एक रफी भक्त सदस्य का परमाणु बम उधार लिया और चौबे-जी के ऊपर गिरा दिया – चौबे यार तुम्हें नहीं लगता कि रफी एक बेहतर गायक थे और उनके गायन में काफी विविधता थी | वो गज़ल, भजन, कव्वाली और याहू वगैरह काफी सरलता से गा लिया करते थे |


अब तक “मिलर लाईट” बियर ने अपना धार्मिक प्रभाव चौबे-जी पर दिखाना शुरू कर दिया था और वो एक शाँत संत की तरह बोले – भैय्या अतुल अब तुमको तो ये पता ही है कि मुझको मिठाईयाँ बहुत ही अच्छी लगती हैं | दरभंगा, जहाँ का मैं रहने वाला हूँ, मिठाईयों के लिये बहुत ही मशहूर भी है | जिस गली में हमारा पुश्तैनी घर है उसमें दो हलवाईयों की दुकानें हैं | एक का नाम है चिपचिपा मिष्ठान भंडार और दूसरी दुकान है लालू हलवाई की | अब भैय्या ये जो चिपचिपा वाली दुकान जो है ना हाथी के पेट की तरह बहुत ही विशालकाय है | आप उसमें दस या बारह अदद टाटा की ट्रकें खड़ी कर सकते हैं और उतनी ही टाटा सुमो भी | और उसका हलवाई भी तकरीबन पचास या साठ तरह की मिठाईयाँ बनाता है – गुलाब जामुन, रस मलाई, बालू शाही, काजू बर्फी, चमचम, मलाई पान, जलेबी, इमरती और न जाने क्या क्या |


पर मुझे इन सब मिठाईयों में थोड़ी कम दिलचस्पी है | मैं एक सीधा साधा प्राणी हूँ और साधारण मिठाई का ही भोग लगाता हूँ | मुझको तो आप बस पत्तल के एक दोने में प्यार से पकाई हुई रबड़ी दे दो | लालू कि दुकान एक छोटे से ढाबे की तरह है | लालू ये सब बड़े बड़े नामों वाली मिठाईयाँ नहीं बनाता है – बनाता है सिर्फ रबड़ी, उंगलियाँ चाटने वाली रबड़ी और पूरे प्यार के साथ | लालू का सिर्फ एक ही धर्म है और एक ही कर्म है – रबड़ी में पूरा प्यार, परिष्रम और लगन घोल दो ताकि ग्राहक पूरी तरह संतुष्ट हो कर शुभाषीश देता हुआ दुकान से जाये | जिस तरह से लालू धीरी आँच पर धीरे धीरे रबड़ी औटाता है जब तक कि रबड़ी पूरी तरह से मलाई की एक मोटी और हल्की भूरी परत से न ढक जाये, जिस तरह से वो रबड़ी को एक पतली सी चाँदी की परत से सजाता है – अतुल भैय्या ये सब एक स्वर्गिक अनुभव है | दूसरी तरह चिपचिपा मिष्ठान वाला हजारों तरह की मिठाईयाँ बनाता है पर सब की सब चाशनी की अनगिनत परतों से ढकी रहती है | आप एक बालूशाही उठाओ और चाशनी झरने की तरह बहने लगेगी | और तुमको तो ये पता ही है हमरे खानदान में डाइबिटीज़ की परम्परा है |


ये सब कहने का सारांश ये है कि मुझे चिपचिपा मिष्ठान की चिपचिपाती हुई अनगिनत मिठाईयों में कोई रुचि नहीं है | मुझको तो आप बस अच्छी तरह से औटाई हुई हल्की सी मीठी रबड़ी एक दोने में दे दो और मैं एक संतुष्ट आदमी की तरह ये भजन गाता मिलूँगा – यही जीवन है...


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- अतुल श्रीवास्तव

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-अतुल श्रीवास्तव

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