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आमंत्रण

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Sep 8, 2020
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024


हूँ दृष्टिहीन मैं, ओ चंचल बाला,

कैसे बूझूँ तेरे नयनों की मादक भाषा।

देख सकूँ न हाव भाव, जो करें उजागर,

तेरे अंतर्मन की तपती अभिलाषा।

अन्य भी हैं इन्द्रियबोध हमारे,

करें प्रज्वलित जीवन में जीने की आशा।

परे दृष्टि से, आओ हम तुम रचते हैं,

प्रणय संकेतों की नूतन परिभाषा।


कभी हरसिंगार, कभी चम्पा बन प्रियतम,

तनु सुगंध वितरित कर उर दशा बताओ।

आनन पर मेरे, कुंतल का मेघ गिरा,

महुए सा मादक रति रस बरसाओ।

ग्रीवा पर श्वास का तप्त बाण चला,

कामुक आशा का स्पंदन लहराओ।

यदा कदा वाणी का लय ताल बदल तुम,

प्रेम भाव का सम्मोहक संदेश सुनाओ।


रूप का आकर्षण मैं क्या समझूँ,

रूप तुम्हारा, तेरी मिष्ठी वाणी दर्शाती।

गौर-वर्ण है क्या, ये कैसे मैं जानूँ,

प्रेम आस्था तेरा निर्मल रंग है दिखलाती।

ओ वनिता, अनुभूति तुम्हारी ही मुझको,

प्रणय संकेतों का नव अर्थ बतलाती।

हूँ दृष्टिहीन मैं, ओ चंचल बाला, दृष्टि नहीं,

हृदय भावना ही मुझको प्रेम-जाल में है उलझाती।

तनु: देह, शरीर

उर: हृदय

आनन: चेहरा, मुखड़ा

कुंतल: केश, बाल

रति: प्रेम, आसक्ति, शृंगार रस का स्थायी भाव (कामदेव की पत्नी का नाम रति है)

ग्रीवा: गर्दन

स्पंदन: कंपन, थरथराहट

वनिता: स्त्री, नारी


****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: मोनो लेक, कैलीफॉर्निया]


1 Comment


Hari B Srivastava
Hari B Srivastava
Sep 09, 2020

दृष्टि हीन के मन की श्रंगार भावना का सुंदर चित्रण

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-अतुल श्रीवास्तव

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