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अर्थहीन अस्तित्व

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Jul 13, 2022
  • 2 min read

Updated: Mar 29, 2024



शिथिल पड़ गई काया आदि काल से जलते चलते,

क्षुब्ध हो गया मैं, तेरे कर्मों का दोषारोपण सुनते सहते|

करूँ करबद्ध प्रार्थना दे दो एक चिर निद्रा का वरदान,

दुष्कर है आगे अब चलना, चाहूँ मैं एक लंबा विश्राम|


सदियों का सानिध्य हमारा, चित्त रहा फिर भी अशांत,

मिल कर भी रोक सके न पीड़ाओं का उद्वेलित प्रशांत|

ज्ञात हुआ मैं अर्थहीन हूँ, मैं क्यों तुम सबके मध्य रहूँ ,

जाने दो अब गहन गुहा में, अपनी गाथायें क्यों व्यर्थ कहूँ?


करी अपेक्षा तुमने मुझसे जीवन में स्वर्ग सजाने को,

अब तक व्याकुल भटक रहे हो मोक्ष धरा पर पाने को|

विफल हो गया मैं, मेरे अस्तित्व का कोई औचित्य नहीं,

भ्रम जाल से मैं मुक्ति पाऊँ, अब करूँ कूच मैं अभी यहीं|


हाँ धर्म हूँ मैं कोई श्वास नहीं जो बिन मेरे मर जाओगे,

मेरा होना अपरिहार्य नहीं कि मेरे बिन न जी पाओगे|

सदा रहे आश्रित मुझ पर, बिन मेरे स्वयं को अवसर दो,

मेरे बिन भी सक्षम हो, उचित अनुचित का अंतर करने को|


क्यों ऐसा भ्रम बना बैठे कि बिन मेरे सुख न पलते तेरे,

क्या वह हर जन मात्र विषादी है जो संग नहीं चलते मेरे,

हाँ धर्म हूँ मैं कोई श्वास नहीं जो बिन मेरे मर जाओगे,

मेरा होना अपरिहार्य नहीं कि मेरे बिन न जी पाओगे|


करो भस्म मुझको हवन कुंड में, बिन मेरे जग चलने दो,

बिन मेरे भी चल कर देखो और मानवता को बहने दो|

हाँ धर्म हूँ मैं कोई श्वास नहीं जो बिन मेरे मर जाओगे,

मेरा होना अपरिहार्य नहीं कि मेरे बिन न जी पाओगे|


शिथिल: थकी हुई

क्षुब्ध: क्रोधित, खिन्न

चिर: दीर्घकालीन, जो बहुत दिनों तक बना रहे

दुष्कर: कठिन

सानिध्य: समीप/ पास होना, निकटता

चित्त: मन

उद्वेलित: अशांत, उफनता हुआ

गहन: गहरा

गुहा: गुफा

अपेक्षा: चाह, आशा

अस्तित्व: वजूद, अंग्रेजी में एक्सिसटेंस

औचित्य: उचित होना, प्रासंगिकता, अंग्रेजी में जस्टीफ़िकेशन

कूच: प्रस्थान करना

अपरिहार्य: अनिवार्य, अत्यंत जरूरी

विषादी: दुखी


****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: ग्रेट सैन्ड ड्यून्स नेशनल पार्क, कोलाराडो]



1 comentario


Subhash Chand
Subhash Chand
15 jul 2022

बहुत सुन्दर कविता । वास्तव मे यह संसार धर्म के बिना अधिक सुन्दर होता। ये धर्म और जातिगत झगडे नही होते।

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-अतुल श्रीवास्तव

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