अंत से प्रारंभ [सत्य घटना पर आधारित]
- अतुल श्रीवास्तव
- Mar 23, 2022
- 5 min read
Updated: Mar 29, 2024

फरवरी का महीना, शनिवार का दिन और सुबह के सात बजे थे| सूरज अच्छा खासा ऊपर चढ़ चुका था पर हवा में तैरती ठंड के आगे उसकी चल न रही थी| अब उठूँ या बिस्तर में अभी और अलसियाऊँ इसी उधेड़बुन में महेश करवटें लिये जा रहा था कि सिरहाने पर रखा सेल फोन बज उठा| उसने अलसियाते हुए फोन उठा ही लिया|
"हैलो!"
"महेश, सोते से तो नहीं उठाया दिया?"
"अरे नहीं राकेश, बस अभी अभी उठा ही था"
राकेश पाण्डे हैं महेश के पुराने और जिगरी दोस्त| दोनों में अथाह प्रेम और आगाढ़ मित्रता है| महेश रहते हैं पोर्टलैंड में और राकेश फीनिक्स में| दोनों में हर दो हफ्ते में एक या दो बार घंटों लंबी बात हो ही जाती है| हर बार की तरह इस बार भी लंबी वार्तालाप होती रही|
"यार महेश, मार्च में होली आ रही है| तुम होली पर फीनिक्स आ जाओ| तुमसे मिले हुए भी अरसा हो गया है| मेरे खयाल से करीब बारह या तेरह साल पहले दिल्ली में मिले थे| उसके बाद से कभी मिलना न हो पाया| आ जाओ साथ में होली की मस्ती करेंगे और एक लंबे अंतराल के बाद मिलना भी हो जाएगा| क्या कहते हो?"
"यार मार्च में न हो पायेगा| एक बहुत ही बड़े प्रोजेक्ट की डेड-लाईन है मार्च के अंत में, और छुट्टी भी न मिल पायेगी|"
"इसी सब चक्कर में मिलना नहीं हो पा रहा है| अब जल्द ही हम सब साठ के होने वाले हैं| कब तक नौकरी की नौकरी करते रहेंगे? कुछ अपनी भी नौकरी कर ली जाये| खैर ... "
"अरे यार रिटायरमेंट के बाद छुट्टी ही छुट्टी फिर मस्ती करेंगे"
तकरीबन डेढ़ घंटे के बाद वार्तालाप समाप्त हुआ| महेश ने फोन मेज पर रखा और चाय बनाने की शुरुआत करने लगा| चाय का पानी अभी चढ़ाया ही था कि फोन फिर से बज उठा| महेश ने बुदबुदाते हुए "अरे ये तो भारत का नंबर है" फोन उठाया|
"हैलो"
"महेश भाई कैसे हो?"
"मैं ठीक हूँ| पर मैं फोन नंबर से आपको पहचान नहीं पाया.. "
"तो फिर पहचानो कौन बोल रहा है"
"हूँ.. ऐसे तो बड़ा मुश्किल है.. "
"हिन्ट देता हूँ मैं तुम्हारा बहुत ही पुराना साथी हूँ|"
बूझो तो जानें का ये सिलसिला काफी देर तक चलता रहा| आखिर महेश ने हथियार डालते हुए कहा, "अब आप बता ही दो कि आप हैं कौन|"
"अजय हूँ भाई अजय|"
"अजय?"
"अजय त्रिवेदी यार| तुम्हारे बचपन का पक्का मित्र| तुम और मैं छठी, सातवीं और आठवीं क्लास में साथ साथ पढे थे| अक्सर साथ ही पाये जाते थे.. हा हा हा "
महेश के सामने 46 साल पुराना दृश्य तैर गया - एक दुबला पतला लड़का जो उसका परम मित्र था| स्कूल में साथ साथ बैठते, खेलते और खाते थे| 1975 के बाद कहाँ गायब हो गया था उसका पता ही न चला|
"विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मैं अपने बचपन के साथी अजय से बात कर रहा हूँ.. पूरे 46 साल के बाद| मुझे बस इतना याद है कि आठवीं के बाद तुम्हारे पापा का इलाहाबाद तबादला हो गया था और शायद 1975 की गर्मियों में ही तुम्हें आखिरी बार देखा होगा| पूरी तरह से संपर्क ही टूट गया था| कैसे हो? मेरा नंबर कहाँ से और कैसे मिला?"
"नंबर कैसे मिला इसकी बहुत दिलचस्प कहानी है, आराम से बताऊँगा| इतना अच्छा लग रहा है कि बता नहीं सकता|"
बचपन के दो पक्के दोस्त पूरे 46 साल के बात फोन पर घंटों बात करते रहे| उसके बाद तो फोन पर बातों का ये सिलसिला शुरू हो गया - हर पंद्रह बीस दिन में फोन पर लंबी लंबी बातें होतीं| अजय को पुराने हिन्दी गानों का शौक और अथाह ज्ञान था और महेश को भी पुराने हिन्दी गानों में बहुत दिलचस्पी थी| कई बार तो दोनों घंटों इसी विषय पर बातें करते रहते थे - गाने के बोल, धुन, वाद्य यंत्रों का प्रयोग और गाने का चित्रीकरण| अजय को दुनिया देखने की भी बहुत इच्छा थी| अजय का बड़ा बेटा अमेरिका में था, पीछे पड़ा रहता था कि पापा लंबी छुट्टी ले कर आ जाओ| पर एक प्रशासनिक अधिकारी होने के कारण अजय के लिये लंबे अवकाश पर जाना संभव नहीं था| पिछले साल बेटे की निरंतर जिद के कारण अमेरिका आने का प्लान बना पर कोविड के कारण स्थगित करना पड़ा| महेश और अजय ने यह तय किया कि 2021 के अंत तक स्तिथि संभवतः सुधर जायेगी, तब वह बेटे से मिलने फ्लोरिडा और महेश से मिलने पोर्टलैंड आयेगा|
सितंबर में महेश का भारत जाने का कार्यक्रम बना| इस बार तो महेश को इलाहाबाद जाना ही था अजय से मिलने के लिये | महेश ने सोचा कि इलाहाबाद पहुँच कर ही अजय को फोन करेगा कि वो उससे मिलने आ रहा है| आखिर महेश भारत पहुँचा और तीन दिन बाद प्रयागराज एक्सप्रेस ले कर पहुँच गया इलाहाबाद| इलाहाबाद पहुँच कर बहुत ही उत्साह के साथ अजय को फोन मिलाया|
"और भाई महेश क्या हाल हैं?"
"मस्त! घर का पता बताओ, मिलने आ रहा हूँ|"
"गजब यार! इलाहाबाद में हो क्या?"
"हाँ|"
"पर यार तुम्हारी टाईमिंग गड़बड़ हो गई| मैं तो अभी मनाली में हूँ|"
"कब वापस आ रहे हो? बताओ, मैं इलाहाबाद का दुबारा चक्कर लगा लूँगा|"
"लंबी यात्रा है यार| अब इतनी दूर आया हूँ तो सोच रहा हूँ कि लद्दाख की भी सैर कर ली जाये| बहुत दुख हो रहा है कि तुमसे मिलना न हो सका|"
मिलना तो न हो पाया पर फोन पर बात लंबी हो गई|
तीन हफ्ते भारत में बिताने के बाद महेश पोर्टलैंड वापस आ गया| आने के कुछ दिनों के बाद महेश ने अजय को फोन किया, पर अजय ने उठाया नहीं| उसके बाद महेश ने न जाने कितनी बार फोन किया पर अजय ने कभी उठाया नहीं| व्हाट्सएप के मैसेजेस का भी जवाब नहीं आ रहा था, जब कि अजय महेश के सारे मैसेजेस देख और पढ़ रहा था| फिर धीरे धीरे महेश ने भी फोन करना और मैसेजेस भेजना तकरीबन बंद ही कर दिया|
महेश को पोर्टलैंड वापस आये हुए अब एक महीने से ज्यादा हो गये थे| अक्टूबर का महिना खतम ही होने वाला था, मौसम में थोड़ी थोड़ी ठंड भी शुरू हो गई थी| ऐसे ही बदलते मौसम के एक दिन महेश का फोन बजा, और फोन पर नंबर चमक रहा था अजय का|
"अबे अजय, कहाँ गायब हो गये थे फिर से? फोन नहीं उठा रहे थे, मैसेजेस का जवाब नहीं दे रहे थे| चक्कर क्या है भाई?"
"अंकल, मैं प्रत्यूष बोल रहा हूँ अजय का बेटा| पापा नहीं रहे.. आपको याद करते थे और हम सबको आपके साथ के बचपन के किस्से सुनाते थे| मैं आपके सारे मैसेजेस पढ़ रहा था, सोचा आज आपको बता दूँ|"
महेश स्तब्ध - कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कैसी प्रतिक्रिया करे| एक रुँधे हुए गले से महेश ने पूछा, "कैसे हुआ?"
"पापा को प्रासटेट कैंसर था| पिछले साल पता चला था| काफी बढ़ गया था |"
"पर जब मैं इलाहाबाद गया था तो उसने कहा कि वो मनाली में है|"
"पापा उस समय अस्पताल में काफी क्रिटिकल हालत में ऐड्मिट थे| वो नहीं चाहते थे कि आप उन्हें उस हालत में देखें| वो चाहते थे कि आप उनका हँसता हुआ चेहरा ही याद रखें|"
"पर मनाली यात्रा?"
"पापा को घूमने की बहुत इच्छा थी, पर परिवार और नौकरी की वजह से शायद कर नहीं पाये| जब अस्पताल में थे तो यूट्यूब पर ट्रैवल के वीडियो देखते रहते थे| शायद उस दिन मनाली का वीडियो देख रहे होंगे| पिछले एक दो साल से पापा को एक हुड़क थी कि अपने बचपन के साथियों से री-कनेक्ट करें| आपको और अपने बचपन के दिनों के कई और दोस्तों ढूँढ कर वो बहुत खुश हुए थे|"
कुछ देर प्रत्यूष से बात करने के बाद महेश ने फोन रख दिया| बहुत ही बुझे मन से बैठा था कि फिर से फोन बज उठा|
"हाँ बोलो राकेश.. "
थोड़ी देर इधर उधर की बातें होती रहीं, फिर राकेश ने कहा, "मुझे वैसे तुम्हारा जवाब मालूम है फिर भी पूछ लेता हूँ| नवंबर में दिवाली है, फीनिक्स आ जाओ.. "
"तैयारी कर के रखो, पूरे हफ्ते के लिये आ रहा हूँ|"
** प्रारंभ **
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: मेक्सिको सिटी, मेक्सिको ]
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