अंततः
- अतुल श्रीवास्तव
- Aug 17, 2021
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Updated: Mar 29, 2024

प्रतुल मिश्रा! आज इन महाशय का सत्तरवाँ जन्मदिन है। वैसे तो इनका जन्मदिन पिछले साल भी मनाया गया था पर मात्र पाँच या छः लोग ही थे - ये खुद, इनकी धर्मपत्नी सरिता और दो पड़ोसी। पर इस जन्मदिन पर काफी बड़ा आयोजन हो रहा है। दोनों बेटे और बहुयें दूर शहर से आये हैं, कई रिश्तेदार, पड़ोसी और साथ में काम कर चुके सहकर्मी।
पर प्रतुल जी को कोई खास उत्साह नहीं है। ये जनाब कुछ अलग ही किस्म के प्राणी हैं। शायद हम सब भी इसी ही श्रेणी में आते हों। प्रतुल जी बहुत ही मुँह-फट आदमी हैं। जो मन में आया बस बोल देते हैं ये बिना सोचे समझे कि सुनने वाले को कैसा लगेगा। इनको लगता है कि सिर्फ यही सही सोचते हैं, इसलिये जो ये कहते हैं वो राम-वाणी है और सबको बस वही करना चाहिये। आदर्शवादी तो हैं ही साथ में कुछ पुरातन विचार अभी भी मस्तिष्क में पाल रखे हैं। बस इन्हीं सब कारणों से इनकी अधिकतर लोगों से खिटपिट ही रहती है। बेटों और बहुओं से अधिक बनी नहीं क्यों कि विचारों में कभी तालमेल न बैठा। दोनों बेटों से तो हमेशा ही झिकझिक होती रही। पत्नी भी इनके नियमों और फरमाईशों से हमेशा तंग ही रही। अपने धर्म-विरोधी विचारों और घूस न लेने की आदत की वजह से पड़ोसियों और सहकर्मियों से हमेशा ही तू-तू मैं-मैं होती रही। पड़ोसियों और सहकर्मियों ने तो इनको अनगिनत विशेषण भी दे डाले - नास्तिक, पापी, खड़ूस, गुस्सैल, पागल, स्वार्थी और न जाने क्या क्या।
एक बात प्रतुल जी को हमेशा कचोटती रही कि किसी ने आज तक उनकी किसी भी बात की सराहना नहीं करी। इन्हें हमेशा से ये गलत या खुश फहमी रही कि ये जनाब बुद्धिजीवी हैं, उदार हैं, रचनात्मक हैं, हृदय से बहुत अच्छे हैं, समाज का भला सोचते हैं, और अपने परिवार के समस्त सदस्यों को निःस्वार्थ स्नेह करते हैं, वगैरह, वगैरह। अब अगर इतने सारे गुणों के बावजूद भी कोई भी किसी भी प्रकार की सराहना न करे, खास कर आपके बेटे और पत्नी, तो दुख तो होगा ही। बस इसी दुख से प्रतुल जी भी ग्रसित हैं। इसी लिये इन्हें इन सब प्राणियों से इस समारोह में मिलने में कोई रुचि न थी।
दोनों बेटों ने दोपहर के भोजन का आयोजन रखा ताकि समस्त आने वाले बाहर प्रांगण में जनवरी की गुनगुनाती धूप का अनंद ले सकें। सुबह के ग्यारह बज चुके थे और लोगों का आना प्रारम्भ हो चुका था। लोग आ कर प्रांगण में रखी कुर्सियों पर बैठने लगे। खिन्न मन से प्रतुल जी भी सबसे पीछे कोने में रखी एक कुर्सी पर जा बैठे। बड़े बेटे विपिन ने प्रतुल जी की दिशा में हाथ हिलाया। प्रतुल को लगा कि मुझे संकेत दे रहा है अतः उन्होंने भी हाथ हिला कर जवाब दे दिया कि हाँ भाई मैं आ गया हूँ और यहाँ बैठा हूँ। विपिन ने हाथ हिलाने के बाद आवाज लगाई, "आप पीछे क्यों बैठे हैं? आगे आईये न।" प्रतुल ने हाथ जोड़ लिये - मतलब कि मैं यहीं ठीक हूँ। पीछे दूर बैठे होने के कारण प्रतुल को सामने हो रही क्रियायें दिखाई न दे रहीं थी, पर उनको इन सब में कोई दिलचस्पी न थी।
अब तक सभी लोग उपस्थित हो चुके थे। बड़े बेटे विपिन ने खड़े हो कर सबका स्वागत किया और कहना प्रारम्भ किया - आज पिता जी का सत्तरवाँ जन्मदिन है। मैं बस यही कामना करता हूँ कि सभी लोगों को मेरे पिता जैसा ही पिता मिले - उदार, स्नेह से भरपूर। मैं आज जो भी हूँ उन्हीं के मार्गदर्शन और त्याग की वजह से हूँ। विपिन अविरत पाँच मिनट तक प्रतुल जी का महिमा-गान करता रहा।
विपिन के बाद छोटे बेटे विपुल ने प्रतुल जी से जुड़े अपने बचपन और युवा अवस्था के कई किस्से सुनाये जिन्हें सुनाते सुनाते उसकी आँखें नम हो गयीं। उन किस्सों के माध्यम से विपुल ने प्रतुल जी की उदारता, संवेदनशीलता, आदर्शवादी सोच और परोपकारिता का उल्लेख किया।
इसके बाद तो सभी रिश्तेदारों और सहकर्मियों की कतार लग गई। सभी को कुछ न कुछ प्रतुल के बारे में कहना था। लोगों ने उनकी सराहना एक सच्चा मित्र, भाई, भला इंसान, ईमानदार, परोपकारी, आदर्शवादी, हंसोड़ा और गुणी व्यक्ति कह कर की।
पीछे बैठे प्रतुल जी की आँखें ये सब सुन कर नम हो चली थीं। वो मन ही मन अपने आप को कोसने लगे कि उन्होंने कैसी गलत धारणा इन सभी के लिये बना रखी थी। अब तो नम आँखों से अश्रु प्रवाह भी प्रारम्भ हो गया था सभी की आत्मीयता देख कर।
खाने का समय हो गया था। विपिन ने घोषणा करी कि भोजन तैय्यार है। आज पिता जी की पसंद का ही भोजन है - बाटी चोखा, कढ़ी चावल, मिठाई में इमरती और आटे का हलवा। ये सुनते ही प्रतुल जी के अश्रु प्रवाह के साथ साथ हिचकियाँ भी प्रारम्भ हो गयीं। बेटों के प्रति असीम प्रेम जाग उठा कि उन्हें मेरी पसंद तक याद हैं।
अपने मन पसंद व्यंजनों का नाम सुनते ही मनो प्रतुल जी को पंख लग गये हों। सबसे पीछे बैठे थे पर भाग कर सबसे आगे पहुँच गये खाने की मेज की ओर। पर ये क्या खाने की मेज पर उन्हीं की बड़ी सी तस्वीर रखी थी जिस पर गेंदे के फूलों की माला भी चढ़ी हुई थी। तस्वीर के नीचे लिखा हुआ था - प्रतुल मिश्रा जनवरी 15, 1951 - जनवरी 14, 2021
तो ये कारण था - ये बुदबुदाते हुए प्रतुल जी पलट कर घर और प्रांगण से बाहर की ओर चल पड़े।
अंततः प्रतुल को वो सराहना मिल ही गई जिसकी उन्हें हमेशा से चाह थी।
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: सैक्रामेंटों, कैलीफॉर्निया]
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