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ज़िन्दगी

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Jul 29, 2022
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024



काश ज़िन्दगी चव्वनियाँ होती, तो गुल्लक में बचा कर रख लेता।

जब जितनी जरूरत होती,

बस उतनी ही निकाल कर खर्च कर देता।


पर हकीकत है ये कि,

गुल्लक में चव्वनियाँ बढ़ रही हैं,

और, बिना कुछ भी करे,

ज़िन्दगी की अशर्फियाँ घट रही हैं।


बस इसी उधेड़बुन में फँसा हूँ,

कि बची पूँजी खर्च करूँ कैसे,

दूसरों में बाँट दूँ, या फिर

अपने पर ही लुटा दूँ चंद बचे पैसे?


काश ज़िन्दगी एक बहती दरिया होती,

तो बाँध बना उसका बहना थाम देता।

जब जितनी ही प्यास लगती,

बस उतना ही पानी कटोरे से निकाल लेता।


कोशिश करी पर कमबख़्त बहती चली गई,

सोचता हूँ अब सूखती नदिया संग ही बह लूँ।

गुजरी बाढ़ में तो बहुतों की बहुत सुन ली,

चैन से बहना है, अब अपनी भी कुछ कह दूँ।


ये दुनिया अचम्भों से भरी पड़ी है,

नदिया को बहने से सब न दिखेगा?

उड़ती जिंदगी के पंख लगा लूँ,

अब तो उड़ कर ही चैन मिलेगा।


काश ज़िन्दगी मिट्टी का दिया होती,

अपने ही हाथों से बाती खुद ही बनाता।

माचिस अपने ही पास होती, और

छाता अंधा अंधेरा तभी उसे जलाता।


काश ज़िन्दगी.....


****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: बिशप, कैलीफॉर्निया के पास]


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-अतुल श्रीवास्तव

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