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शरद आगमन

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Oct 13, 2020
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024



खौलता सूरज अब गुनगुना हो गया है,

पेड़ों का मिज़ाज भी खूब रंगीन हो गया है,

काटने दौड़ती थीं जो, वो हवा अब लगी हैं चूमने,

काजल लगा कर बादल भी लगे हैं झूमने,

रुमानी शामें भी कुछ लम्बी हो चली हैं,

सूरज की किरणें भी अब लगती भली हैं,

कोहरे की परतों में सब दुबकने लगे हैं,

घासों पर मोती अब चमकने लगे हैं,

फिटी काफी, तुम और सिर्फ एक ही कम्बल हो,

मन फिर से जवाँ और थोड़ा सा चंचल हो,

और क्या चाहिये, बस यही जीवन है,

वहाँ पता नहीं, पर यहीं जीवन है।

****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: कैंडी, श्री लंका]

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-अतुल श्रीवास्तव

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