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वृष्टि

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Feb 16, 2021
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024


हुआ लुप्त दिनकर, छाया गहरा अंधियारा,

क्या धरा ताप देख, रवि सुप्त हो कर अलसाया,

या उद्दंड बादलों समक्ष समर्पण कर ही आया?

हुआ लुप्त दिनकर, अम्बुद ने अमृत जल बरसाया।


मृदंग नाद पर करे तांडव नीरद घन घन कर के,

रौद्र रूप धारण कर दामिनी पल पल चमके दमके,

संगीत सुनाती बरखा, निर्भय हो अविरत झम झम बरसे,

हुआ लुप्त दिनकर, बहा सोम हर जन पीने को है तरसे।


लाज त्याग सरिता लहराती हो कर के उन्मादित

झूम रहे तरु, बाग बगीचे मंद पवन में हो आनंदित,

किसलय का करें सिंगार ये बूँदें मोती बन बन के,

हुआ लुप्त दिनकर, विचरण करता अब जीवन बन ठन के।


ताल तलैय्यों में उमड़ें तरंग बूँदों के कामुक स्पंदन से,

वारिद भी अब द्रवित हो रहा हर जन के अभिनंदन से,

भाव विभोर मृदा पवन संग वितरित करती है सुगंध,

हुआ लुप्त दिनकर, बहती बयार सिहराती हर अंग प्रत्यंग।


वसुधा हुई कमनीय शुष्क आँचल के नम हो जाने से,

गिरि का उपचार हो रहा, पीड़ित जो दावानल के झुलसाने से,

बादल की छलनी से किरणें झांकें, ताकें ये पर्व सभी का पावन,

प्रकट हुआ दिनकर, करे उपेक्षित कैसे ये दृश्य अति मनभावन।

****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: सैन मिगेल दे अयंदे, मेक्सिको]

2 Comments


GHAN SHYAM TRIPATHI
GHAN SHYAM TRIPATHI
Jan 30, 2022

एक छायावादी कवि।

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Hari B Srivastava
Hari B Srivastava
Feb 17, 2021

क्या बात है। अत्यंत सुंदर छायांकन

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-अतुल श्रीवास्तव

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