top of page

वो कौन थी?

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 5 min read

Updated: Aug 12, 2022


ree

राहुल ने बधाई पत्र को उसके आवरण से निकाल कर पढ़ना प्रारंभ किया, “जीवन का अर्ध शतक सफलतापूर्वक पूर्ण करने की हार्दिक बधाई। आशा है शतक के उत्सव में भी हम सबको आमंत्रित किया जायेगा। ”


राहुल ने मुस्कराते हुए सबको धन्यवाद दिया और मेज पर रखे केक पर लगी हुई मोमबत्तियाँ बुझा कर केक को काटने ही जा रहा था कि दृष्टि चौखट पर खड़ी एक छोटी सी लड़की पर जा टिकी। छः या सात साल की वो लड़की मंद मंद मुस्कान के साथ अपने आप को दरवाजे के पीछे छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी। राहुल हाथ के इशारे से उसे अंदर बुलाने लगा। सरिता, राहुल की पत्नी, ने पीछे से आकर पूछा, “ये हाथ के इशारे से किसको अंदर बुला रहे हो?”


“वो चौखट पर जो छोटी सी लड़की खड़ी है उसी को अंदर बुला रहा हूँ। बहुत प्यारी सी है। सोचा उसको भी अपने जन्म दिवस की खुशी में सम्मलित कर लूँ। ”


“पर वहाँ पर तो कोई नहीं है। ”


“चौखट के पीछे ही तो खड़ी थी। लगता है भीड़ देख कर भाग गयी। ”


“पर राहुल चौखट तक कोई आ ही नहीं सकता है। बाहर के गेट पर ताला लगा हुआ है। तुमको कोई भ्रम हुआ होगा। ”


रात पूर्णतः फैल चुकी थी। अतिथियों ने एक बार पुनः राहुल को पचासवें जन्मदिवस की बधाई दी और एक एक कर के विदा ली। सभी लोगों के चले जाने के बाद सरिता ने राहुल से कहा, “थक गये होगे। तुम चल कर सोने की तैय्यारी करो। मैं बस थोड़ी सफाई कर के आती हूँ। ”


राहुल अपने कमरे के दरवाजे तक पहुँचा ही था कि उसे अंदर से एक छोटी लड़की के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी। कमरे में पहुँचा तो देखा वही छोटी लड़की बिस्तर पर उछल रही थी। पर इस बार उसके बाल दूसरी तरह से बने हुये थे और कपड़े भी भिन्न थे। “तुम यहाँ कैसे आ गयी?”


ये सुनते ही वो बच्ची बिस्तर से कूद कर खिलखिलाती हुई कमरे में इधर उधर भागने लगी और राहुल भी एक बच्चे की तरह उसका पीछा करने लगा, “ठहर। अभी पकड़ कर मैं तुम्हारी खैर लेता हूँ। तुम हो कौन? यहाँ कैसे आई?”


“राहुल ये क्या बच्चों की तरह भाग दौड़ कर रहे हो? और, ये बातें किससे कर रहे हो?”, सरिता ने पीछे से टोका।


“अरे वही छोटी लड़की। । । । ”


“राहुल ये अचानक क्या हो गया है तुमको? थक गये हो चलो अब सो जाओ। ”


बिस्तर पर आँख मूँद कर आधा घंटे लेटने के बाद भी राहुल को झपकी नहीं लगी। उठ कर बाहर के कमरे की तरफ चल पड़ा पानी पीने के लिये। जैसे ही राहुल ने फ्रिज खोला, उसकी रोशनी में उसे फ्रिज के बगल में सलवार कुर्ते में सजी एक पंद्रह या सोलह वर्ष की युवती खड़ी दिखाई दी जो राहुल को एकटक देखे जा रही थी। “कौन हो तुम? अंदर कैसे आ गई सारे दरवाजे और खिड़कियाँ तो अच्छे से बंद हैं। तुम्हारी शकल तो बिल्कुल उस बच्ची से मिलती है जो अभी कुछ देर पहले मेरे सोने के कमरे में उछल कूद मचा रही थी। लगता है जैसे कि मैं तुम्हें पहले से जानता हूँ। कृपया अपना नाम बताओ। ”


राहुल की बड़बड़ाहट से सरिता की आँख खुल गयी। सरिता ने बाहर आ कर देखा कि राहुल फ्रिज का दरवाजा खोल कर अपने आप से ही बातें किये जा रहा था। “राहुल तबियत ठीक नहीं लग रही है क्या?”


“मैं तो ठीक हूँ। पर इस लड़की से पूछो कि ये अंदर कैसे आ गयी। ”


“पर राहुल वहाँ तो कोई भी नहीं है। मुझको तो अब डर लगना शुरू हो गया है। कहीं कोई भटकती हुई आत्मा तो नहीं है? कुछ कहती है तुमसे?”


“कुछ नहीं। बस मंद मंद मुस्कराती रहती है। ”


“अभी भी खड़ी है वहाँ पर?”


“नहीं अब चली गयी है। ”


राहुल और सरिता दोनों कमरे में आकर सोने का असफल प्रयास करने लगे। सरिता को नींद नहीं आ रही थी भय के कारण, और राहुल सोच रहा था कि वो बच्ची इतनी शीघ्र इतनी बड़ी कैसे हो गयी। अगले दिन सरिता को कार्यवश घर से बाहर जाना पड़ा। सरिता की अनुपस्तिथि में उसका चाय पीने का मन होने लगा अतः उठ कर रसोई में जाकर चाय बनाने लगा। पानी के साथ साथ दूध, अदरक और चाय की पत्ती भी खौलने लगे कि राहुल को याद आया कि चीनी का डिब्बा तो बाहर के कमरे में रखा है। वो जब चीना का डिब्बा ले कर लौटा तो देखा कि गैस के चूल्हे के बगल में साड़ी में लिपटी हुई बीस या बाईस साल की एक युवती खड़ी थी। राहुल कुछ कहता उससे पहले ही वो युवती बोल पड़ी, “चाय कबसे बनानी शुरू कर दी? याद है पहली बार जब चाय बनाई थी तो चीनी की जगह नमक डाल दिया था। ”


“तुमको कैसे पता?”


युवती कोई उत्तर देती उससे पहले ही घंटी बज उठी। राहुल ने दरवाजा खोला। “ड्राई क्लीनिंग करवाने वाले कपड़े तो घर में ही भूल गई थी। ”, कहते हुए सरिता अंदर आ गई और राहुल को विचलित देख कर पूछा, ““क्या हुआ राहुल? सब ठीक तो है?”


“रसोई में एक औरत खड़ी है। ” सरिता ने भाग कर रसोई में झाँका, “यहाँ तो कोई भी नहीं है। मुझे तो बहुत डर लग रहा है। ऐसा करो तुम घर में अकेले मत रहो। बाहर जा कर पार्क में टहल आओ। मैं ढाई तीन घंटे में वापस आ जाऊँगी। ”


राहुल ने स्वीकृति में सर हिलाया और अकेले का समय व्यतीत करने के लिये पार्क में जाकर बैठ गया। अपने चारों ओर टहलते हुये लोगों और इधर उधर भागते हुये बच्चों को निहारने लगा कि अचानक उसकी दृष्टि कोने में अकेले खड़ी हुई एक दस या ग्यारह साल की लड़की पर पड़ी। वही चेहरा। वो लड़की राहुल को अपने पास बुलाने लगी और राहुल सम्मोहित सा उसकी ओर बढ़ चला। थोड़ी ही देर में राहुल भी उस लड़की के साथ बाकी के बच्चों की तरह खिलखिलाते हुये भाग दौड़ करने लगा। समय कब व्यतीत हो गया उसे तब पता चला जब पीछे से सरिता की आवाज आई, “घर चलें?”


रास्ते में बगल में रहने वाले शर्मा दम्पति मिले। श्रीमति शर्मा ने सरिता से कहा, “आज तो भाई साहब बिलकुल बच्चों की तरह पार्क में खेल रहे थे और वो भी अकेले। ”


“पर मैं अकेले.... ” राहुल ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया।


“चलो पार्क में तुम्हारा मन लग गया। पर अकेले ही भाग दौड़? ”, घर पहुँच कर सरिता ने राहुल से कहा।


“मैं अकेले नहीं था। मैं तो एक दस या ग्यारह साल की लड़की के साथ... और अचंभे की बात तो ये है कि उसकी शक्ल बिल्कुल उस छोटी बच्ची, किशोर लड़की और युवती से मिलती जुलती थी। ”


“राहुल तुम मुझे बहुत डरा रहे हो। मैं सोच रही हूँ पंडित जी को बुलाया जाये। खैर मैं खाना बनाने जा रही हूँ जब तक तुम ऊपर वाले कमरे का फ्यूज़ बल्ब बदल दो। मैं बल्ब ले आई हूँ बाहर के मेज पर रखा है। ”


राहुल ने बल्ब उठाया और ऊपर के कमरे की ओर चल पड़ा। ऊपर पहुँचा तो उसने देखा कि कमरे में रखी हुई कुर्सी पर गुलाबी रंग का सलवार कुर्ता पहने हुये लंबे बालों वाली लगभग उन्नीस वर्षीय एक युवती बैठी हुई है। “कौन हो तुम? हर बार अलग अलग वेश-भूषा और आयु में दिखती हो। मेरे अतिरिक्त किसी और को क्यों नहीं दिखायी देती हो?”


“राहुल मैं मात्र तुम्हारे जीवन का अंश हूँ किसी और को कैसे दिखाई पड़ सकती हूँ? तुम्हें पता है मैं कौन हूँ परंतु न जाने क्यों तुम मुझे स्वीकार करने का साहस नहीं कर पा रहे हो। ”


“नहीं पता है मुझे कि कौन हो तुम। क्या नाम है तुम्हारा?”


“मेरा नाम जानने की जिज्ञासा है? मेरा नाम स्मृति है। ”


ये सुन कर राहुल कुछ देर चुप रहा और फिर धीरे से बोला, “स्मृति! मेरे बचपन और युवा अवस्था की स्मृति। स्मृति, तुम बहुत निष्ठुर हो। ”


*****

- अतुल श्रीवास्तव

Comments


-अतुल श्रीवास्तव

bottom of page