प्रकृति प्रणय प्रसंग
- अतुल श्रीवास्तव
- May 26, 2022
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Updated: Mar 29, 2024

साँझ ढले, रवि किरणों से चहुँ दिशायें सिंदूरी करे,
घाटी में चंचल नदिया उन्मादित हो कर छलछल बहे,
द्रुम की शाखा से कोयलिया गायन का मीठा राग भरे,
वन वृक्षों की छलनी से बहती बयार कुछ कुछ कहे,
सुन प्रियतम, यह मादकता मैंने ही छलकाई है,
तुम प्रेमपाश में आ जाओ, घाटी मैंने ही महकाई है|
तुंग घिरे उपवन में है थमा हुआ प्रतिदिन का काल,
किरणों के ताल से झिलमिल है शीतल शांत नीलम सा ताल,
पुष्प, लतायें शोभित करें एकाकी में प्रमत्त वृक्षों की डाल,
श्वेत मेघ हैं लहराते, सहलाते अंगद समान पर्वत का भाल
संकेतों को समझो, अरण्य में सज्जित शय्या मैंने ही बिछवाई है,
मुझमें ही रम जाओ, मंद पवन अद्भुत प्रेम सन्देशा लाई है|
कोलाहल से दूर, नीले अम्बर के मंडप तले,
जब शिथिल सूर्य उत्तुंग गिरि के पीछे ढले,
साँझ ढले, नभ में आकाशगंगा झिलमिल जले,
एकाकी परिवेश में निर्मल प्रेम भावना पल पल पले,
यह सुंदर प्रेम पाती मैंने ही लिपिबद्ध करवाई है,
मेरे सम्मोहन में तुम हो, मुझमें तुष्ट अनुभूति ले आई है|
तुंग: पहाड़
प्रमत्त: नशे में चूर (Intoxicated)
अरण्य: जंगल
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: टोक्यो, जापान]
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