निवेदन
- अतुल श्रीवास्तव
- May 19, 2020
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Updated: Aug 12, 2022

इतराती पवन, न बन तू इतनी बावली,
मंडराते श्यामल मेघों को तनिक थम जाने तो दे।
कर आलिंगन बन जा तू भी थोड़ी साँवली,
इन देवों को गरज कर अमृत बरसाने तो दे॥
शाँत हो, यूँ क्यों हो रही तू उतावली,
नभ से अम्बुद का मकरंद थोड़ा निचुड़ जाने तो दे।
जल को तरसे नर, नारी, हर नगरी की बाओली,
थम जा, क्षुधा थोड़ी सी धरा की बुझ जाने तो दे।
उड़ाना नहीं, इन श्याम देवों को तो तुझे है बहलाना,
फिर सरिता की तरंगों पर पतवार ले स्वच्छंद लहराना।
गिरती जलद मोतियों को अपने आँचल से इधर उधर बिखराना,
हो जाये धरा जब हरियाली हरी, तब पंख लगा सबको सहलाना।
इतराती पवन, न बन तू इतनी बावली,
उठते हाथों पर कुछ एक बूँद जल की गिर जाने तो दे।।
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- अतुल श्रीवास्तव
एक और नगीना आपकी कला का अतुल