जो बीत गया
- अतुल श्रीवास्तव
- Jan 13, 2022
- 1 min read
Updated: Mar 29, 2024

जो बीत गया, क्या वो बीत गया?
या ह्रदय मृदा में भावों के मिश्रित दाने है रोप गया?
वर्तमान में भी क्यों अतीत ही जीते हैं,
प्रेम सुधा का पान, बहुधा प्रतिशोध का विष ही पीते हैं।
जो बीत गया वो एक दर्पण क्यों बन जाता है,
यदा-कदा दूजों की कथनी-करनी ही दर्शाता है।
जो बीत गया, क्या वो बीत गया?
जो बीत गया, है सौंप गया विप्लव का रौद्र विकल्प,
इतिहास के पृष्ठों पर मानव लेता कटु संकल्प अल्प।
प्रेम, घृणा और बैर भाव से लतपथ होता मानस पटल,
भविष्य त्याग, हो भूत उचित इस विचार पर हर जन अटल।
जो बीत गया, क्या वो बीत गया?
चित्त हुआ व्याकुल अशांत, पढ़ प्राचीन प्रसंग,
चेतन खोजे प्रशांति, लिप्त हो पूजन सत्संग।
जो बीत गया, वर्तमान में बहता मल के समान,
व्यर्थ बना बैठा मानव व्यतीत वृत्तांतों का ज्ञान।
जो बीत गया, वो न बीत सका!
मृदा: मिट्टी
अतीत: भूत, जो बीत गया
प्रतिशोध: बदले की भावना
विप्लव: क्रांति, उथल-पुथल
विकल्प: Option
संकल्प: कसम, किसी काम को करने का निश्चय करना
अल्प: थोड़े, कुछ
चित्त: मन, अंतःकरण
प्राचीन: पुरानी
प्रसंग: विषय, घटना
चेतन: आत्मा, जीव
प्रशांति: शांति
लिप्त: लीन, किसी काम में तल्लीन
मल: गंदगी
व्यतीत: बीता हुआ, गुजरा हुआ
वृत्तांत: घटना
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: व्हाईट सैंडस नेशनल पार्क, न्यू मेक्सिको]
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