जीवंत
- shria0
- Feb 6, 2024
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Updated: Mar 29, 2024

विदित नहीं कल सूर्योदय संग
जीवन मंजरी खिले न खिले।
उषा काल की मंथर मरुत संग
क्षणभंगुर श्वास हिले न हिले।
शुचि तुषार के विस्तृत प्रांगण में
ये पद कल प्रातः चले न चले।
भविष्य हेतु रोपित बीजों से
आनंद कलिका फले न फले।
कल सूर्यास्त के अंधियारे में
जीवन-ज्योति जले न जले।
आज परंतु जीवंत है, जीवन है
अब अंतर में त्रासायुध पले न पले |
क्यों चिंतित कि कल जीवन में
शीतल मलय सुगंध घुले न घुले|
मंजरी - कली
मंथर - मंद, सुस्त
मरुत - वायु, हवा
शुचि - शुद्ध, पवित्र
तुषार - ओस
कलिका - कली
अंतर - अंदर, भीतर
त्रासायुध - त्रास + आयुध - अनिष्ट का भय + शस्त्र = अनिष्ट के भय का शस्त्र
मलय - चंदन
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- अतुल श्रीवास्तव
[फ़ोटो: मेसा, अरीज़ोना, यू एस ए]
Great message. This is the moment. Live in the present 😊👍