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घुटने की व्यथा

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Jul 23, 2023
  • 2 min read

Updated: Mar 29, 2024


आज मेरा घुटना गुस्से से मुझसे बोला,

साठ साल से चुप था, आज खुन्नस में मुँह खोला|


बिन मुझसे पूछे न जाने कहाँ कहाँ चढ़ जाते हो,

बे-वजह और बेमतलब ही पत्थर से ठोकर खाते हो|


क्या करते हो जालिम, मुझ पर अब तो रहम दिखाओ,

सोफ़े पर ढुँनगो और टीवी पर बालाओं के गीत सुनाओ|


मैंने हैरत से सदा मौन व्रत धारी घुटने पर ध्यान लगाया,

और बेचारे को गुस्से से लाल-पीला और फूला ही पाया|


मैं बोला प्रिय घुटना तू यूँ घुट ना, अब सदा तुझे बतलाऊँगा,

बाहर जाने से पहले तुझको घुटने की स्लीव पहनाऊँगा|


घुटना हाथ जोड़ कर बोला, भ्राता ऐसा पाप न करना,

स्लीव पहन कर बिना साँस के घुट घुट मुझे न मरना|


बात समझ लो साफ साफ ये मुझको पर्वत पर अब न जाना,

पार्टी-शार्टी में ले चलो जहाँ मुर्ग-मुस्सलम और लड्डू खाना|


मैं बोला, बिन पर्वत झील और झरने देखे कैसे काम चलेगा,

सच बोलूँ तो हरी वादियों में विचरण को मेरा दिल भी तो मचलेगा|


घुटना चिल्लाया, तुमको क्या, पीड़ा से मैं ही तो मरता हूँ,

मैं भी फिर चिल्लाया, पर उस पीड़ा को मैं ही तो सहता हूँ|


घुटने ने तर्कश से जहरीला तीर निकाला, बोला अब मैं न हिलने वाला,

हर बात को उसने मेरी, विपक्ष की बकवास कह कह कर टाला|


तर्क-वितर्क का बज गया बाजा, मैंने तानाशाही का रुख अपनाया,

घूर के बक बक करते घुटने को देखा और पूतिन की तरह धमकाया|


मियाँ कितना भी रो लो, हंगामा कर लो, जो चाहूँ वही करूँगा,

चिल्लाती जनता की बात किम जौन्ग उन की तरह नहीं सुनूँगा|


भिनभिन करते घुटने को हड़काया - तुमको आयोडेक्स से नहलाऊँगा,

जबरन घसीट घसीट कर तुमको जब चाहे पर्वत पर ले जाऊँगा|


****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: योसेमेटी नेशनल पार्क, कैलीफॉर्निया]

 
 
 

1 Comment


Hari B Srivastava
Hari B Srivastava
Jul 27, 2023

😄😄

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-अतुल श्रीवास्तव

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