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घूसखोर

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 1 min read

Updated: Aug 12, 2022


परेशान था, विचलित था, मेरा काम नहीं हो रहा था।

हर जानने वाला मुझसे बस यही कह रहा था,


चपरासी को पटाओ, बाबू को खिलाओ,

अपना दुख दूर करो और खुशियाँ मनाओ।


मैंने भी कहा, कुछ भी हो घूस नहीं खिलाऊँगा,

सच्चाई के ही बल पर अपना काम करवाऊँगा।


विचलित मन से शाँति के लिये एक मंदिर में जा बैठा,

पुजारी ने मुझे और मेरे परेशानी के हाव भावों को बहुत प्यार से देखा।


पास आया और बोला - वत्स चिंता न करो, ईश्वर तुम्हारा भला करेंगे,

एक बार पुनः तुम्हारे आँगन में खुशियों के फूल खिलेंगे।


बस ईश्वर के समक्ष चार किलो लड्डू का भोग लगाओ,

दो दर्जन केलों और सेब संतरों का प्रसाद चढ़ाओ।


मुझको भी 2001 रुपये चाँदी की तश्तरी में भेंट करो,

और भीमकाय दान पेटिका को स्वर्ण, रजत और नोटों से भरो।


फिर मैं इस मंदिर के आहाते में एक ऐसा पाठ लगवाऊँगा,

कि ईश्वर से ही तुम्हारे दुख दर्दों को धुलवाऊँगा।


बस अपनी भावनाओं को मैं कर नहीं पाया काबू,

और हाथ जोड़ जोर से चिल्लाया जय हो चपरासी,जय हो बाबू।


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- अतुल श्रीवास्तव

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-अतुल श्रीवास्तव

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