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कैलीफोर्निया

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Sep 17, 2020
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024


मेरा नीला आसमाँ न जाने कहाँ खो गया,

सूरज भी मुँह छुपा कर कहीं है सो गया।

बारिश नहीं, अभी तो बरसते हैं शोले,

बर्फ नहीं, पहाड़ों पर गिर रहे राखों के गोले।

परिंदा न उड़ता दिखाई दे शहरों में आजकल,

बस दरख़्तों की लाशें ही गिर रही हैं जल जल।

सपने उड़ा कर ले गई सबके आँखों की जलन,

महसूस हुआ कैसा रहा होगा सीता का दहन।

ये असली जन्नत हसीन है तुम्हारे ख़याली जहान से,

जलते हो और गिराते हो बिजलियाँ तीर कमान से।

ऐसी भी जलन क्या, आ कर असली जन्नत में रह लेते,

बनाये है सैकड़ों गिरजे, तुम्हें रहने को ये दे देते।

लाल रथ पर सवार यहाँ असली के भी भगवान हैं,

बरसाते रहो कहर, पर ये तुमसे भी बलवान हैं।

हर बार ये हमको इन कयामतों से बचायेंगे,

और हम सब बार बार इस जन्नत को सजायेंगे।

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- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: सेविया, स्पेन]

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-अतुल श्रीवास्तव

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