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एफ़. पी. ओ.

  • अतुल श्रीवास्तव
  • May 19, 2020
  • 7 min read

Updated: Aug 12, 2022


** इस लेख में बीबी साहिबा को धपजी कह कर सम्बोधित किया जायेगा | धपजी= धर्म पत्नी जी **


तीन सप्ताह पुरानी बात है | सुबह सुबह जब आँख खुली तो देखा धपजी खिड़की के सामने गमगीन सी खड़ी होकर कुछ बुदबुदाये जा रहीं थीं | चारों तरफ खतरे की लाल झंडियाँ एक एक कर के खड़ी होने लग गयीं और मैं बिस्तर से इतनी तेजी से उछल कर भागा कि मानो रजाई के भीतर छिपकलियों का पूरा परिवार देख लिया हो | इस तेज उछाल की दया से मैं सीधे धपजी के सामने जा गिरा | आने वाले खतरे को भाँपते हुये मैंने पूछा, “इतनी उदास और परेशान सी क्यों हो, सुबह सुबह | ”


धपजी ने तमतमाते हुये कहा, “ये सब तुम्हारी वजह से है | ”


“हैं? मैं तो अभी तक पूरी तरह से जागा भी नहीं हूँ और अभी तक मेरे मुँह से कुल अठ्ठाईस शब्द ही निकले हैं | मैंने ऐसा क्या कर और कह दिया?” मैंने हर उस पति की तरह बक दिया जो अपनी धपजी की बातों की गूढ़ता को नहीं समझता है |


धपजी थोड़ा और तमतमा कर बोली, “ये सब हिन्दुस्तान के सारे पतियों की करतूत है | ”


“चलो जान में जान आई कि मैं अकेला ही इस इसका जिम्मेदार नहीं हूँ | ये सारे पति साले होते ही निकम्मे हैं | ” कहते हुये मैंने राहत की साँस ली और ये सोच कर कि चलो अपनी जान बच गयी मैं वापस उछल कर बिस्तर पर लोट गया |


धपजी उतनी ही तेजी से मेरी ओर झपटी और मेरे ऊपर से चद्दर खींचते हुये बोलीं, “पता है आज कौन सा दिन है?”


मैंने मन ही मन सोचा, “हे भगवान लगता है मैं फिर से किसी खास का जन्मदिन या विवाह की वर्षगाँठ भूल गया | ” पर भोला भाला बनते हुये कहा, “हाँ हाँ क्यों नहीं आज बुधवार है | ”


“हाँ तुमको क्यों याद रहने लगा | भुगतना तो मुझे ही पड़ता है | ” कहते हुये धपजी कमरे से प्रस्थान करने लगीं |


मैंने पीछे से टोकते हुये कहा, “तुमको तो मेरे सारे रिश्तेदारों ने जयमाल के समय ही बता दिया था कि पहेलियाँ बुझाने में बिरजू धोबी का लंगड़ा गधा भी मुझे चारों खाने चित पटक देता था और अब तो अकल पर बढ़ती उमर का भी असर होने लगा है | अब ज्यादा प्रताड़ित न करो और साफ साफ बताओ कि आज ऐसा कौन सा दिन है कि ...” मैं अपना वाक्य पूरा कर पाता उससे पहले ही धपजी का चार शब्दों का सीधा सा जवाब आ गया, “आज करवा चौथ है | ”


मैं: “हाँ तो?”


धपजी: “हाँ तो? तो क्या? मुझे नहीं रहना पूरे दिन भूखा और वो भी बिना पानी पिये | और, ये मनहूस चाँद भी आज के दिन अपनी सूरत रात के दस बजे के बाद ही दिखाता है | ”


मैं: “पर ये तो हमारी प्रथा है | ”


धपजी: “प्रथा को मारो गोली | ये बताओ कि क्यों रहूँ मैं करवा तुम्हारे लिये? न जाने अपने ब्लॉग में क्या क्या लिखते रहते हो मेरे बारे में | मुझसे अगले जन्म में छुटकारा पाने के तरीके पूछते हो अनजान लोगों से – और, फिर चाहते हो कि मैं दिन भर भूखी रहूँ तुम्हारे लिये | नहीं रहना मुझे करवा का व्रत | ”


मैं: “अरे अरे गुस्सा थूक दो | वो ब्लॉग तो मैंने मजाक में लिखा था | अब अगर तुम्हें नहीं पसन्द है तो मैं अभी जाकर उसे “डिलीट” किये देता हूँ | ”


धपजी: “अपने मन की तो तुमने सारे जग को सुना ही दी – अब उसे हटाने से क्या होगा?”


मैं: “अगर चाहो तो उस ब्लॉग की जगह क्षमा याचना लिख दूँ?”


धपजी: “अब पछतात होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत? कुछ भी कर लो मेरा मन नहीं है ये करवा शरवा का व्रत रह के अपने आपको पीड़ा पहुँचाने का | ”


मुझे विश्वास होने लगा कि धपजी कोई मजाक नहीं कर रही थीं और व्रत न रहने का निर्णय गम्भीर और दृढ़ था | अब तो मेरे कानों में बचपन में सुनी करवा चौथ की कथायें गूँजने लगीं कि पत्नी द्वारा करवा का व्रत न रहने के जघन्य अपराध में किस तरह भगवान जी ने पति महोदय को तड़पा तड़पा के मारा था | सड़क के किनारे मिलने वाले उन कैलेंडरों के चित्र आँखों के सामने घूम गये जिनमें यमदूतों को नरक में आदमियों को खौलते तेल में कचौड़ी की तरह तलते हुये, पापियों को खुली आग पर बकरे की तरह भूनते हुये और कोयले की भट्ठी में तन्दूरी मुर्गे की तरह सेंकते हुये दिखाया जाता था | ऐसे भयावह विचार आते ही मेरी गंजी होती हुई खोपड़ी से कई अदद बाल निकल आये ताकि डर के मारे रोम रोम खड़े हो जाने वाली कहावत पूरी हो सके |


अब बारी थी मेरे गमगीन होने की | दोनों हाथ जोड़ कर मैंने धपजी से याचना की, “ऐसा अत्याचार न करो मुझ पर | थोड़ी तो रहम खाओ | अगर तुम करवा का व्रत नहीं रखोगी तो पता है वो कलूटे यमराज के हबशी यमदूत मेरा क्या हश्र करेंगे? व्रत रह लो भले ही बीच बीच में चाय पानी पी लेना | मेरे खयाल से चाय पानी पीने के जुर्म में करवा वाले देवी या देवता शायद मेरी एक आध उँगली काट कर या हड्डी तोड़ कर ही तसल्ली कर लेंगे – पर जान तो बरकरार रहेगी | बोलो क्या कहती हो?”


धपजी का दिल थोड़ा सा पसीजा और दयाभाव दिखाते हुये कहा, “मैं भी कहाँ चाहती हूँ कि कोई तुम्हारे हाथ पैर तोड़े या तुम्हारे कबाब बनाये, पर अब उमर भी असर दिखाने लगी है और शरीर साथ नहीं देता है कि ऐसे व्रत रख सकूँ | काश कोई मेरे बदले में व्रत रख लेता | ”


... कोई मेरे बदले में व्रत रख लेता। ये सुनते ही मैंने लपक कर धपजी को चूम लिया, “वाह क्या धाँसू ‘आईडिया’ दिया है | भारतीय औद्योगिकी संस्थान की डिग्री और ‘सिलिकॉन वैली’ में रहने वाले सभी भारतीयों का सम्मान करते हुये मेरी भी ये तमन्ना थी कि अपनी कोई ‘कंपनी’ शुरू करूँ पर इस कुंद दिमाग को कुछ सूझ ही नहीं रहा था | आज तुमने मेरी समस्या का समाधान कर दिया | सारे हिन्दुस्तानी तो ‘बी . पी . ओ.’ (बिज़नेस प्रासिसिंग आउटसोर्सिंग) की भेंड़ चाल में लगे हैं, पर मैं बिल्कुल नये तरह के उद्योग की शुरुआत करने जा रहा हूँ – ‘एफ़ .पी.ओ.’ यानि कि फैमिली प्रॉबलम आउटसोर्सिंग | व्रत नहीं रहना है, कोई बात नहीं, आपकी जगह कोई हिन्दुस्तान में व्रत रह लेगा | और, भारत में तो ऐसे ही अनगिनत लोग बिना खाये पिये दिन और हफ्ते गुजार देते हैं | उनके लिये तो ये एक पंथ दो काज वाली बात हो जायेगी – भूखे तो वो वैसे ही रहते हैं, पर साथ में भूखा रहने के पैसे भी मिल जायेंगे | नालायक बेटा दिन भर फेसबुक और यू-ट्यूब पर लगा रहता है, और स्कूल से मिला ‘होम-वर्क’ नहीं करता है? कोई परेशानी की बात नहीं है – हिन्दुस्तान में अनगिनत पढ़े लिखे बेरोज़गार लोग हैं जो सिर्फ़ 7-10 अमरीकी डालर प्रति घंटा की दर से पूरा पूरा ‘होम वर्क’ कर के नालायक बेटे के अध्यापक महोदय की ई-मेल के ‘इन-बॉक्स’ में प्रेषित कर देंगे | क्यों बात कुछ जमी कि नहीं?” मैंने धपजी से उत्साहपूर्वक पूछा |


धपजी ने थोड़ी सी चिंता जाहिर करते हुये कहा, “वो तो ठीक है पर भगवान को ये मंजूर होगा या नहीं?”


मैंने एक ज्ञानी की तरह जवाब दिया, “क्या बात करती हो | हमारे भगवान को ‘प्रॉक्सी’ व्रत से क्या नाराज़गी होगी? अब अगर इस तरह की बातों को नजरंदाज कर दो कि पूजा पाठ भूलने पर वो आँखे फोड़ देते हैं या भगवान जी का मजाक बनाने पर बच्चों को गूँगा कर देते हैं, तो तुम ये पाओगी कि हमारे देवता गण बहुत ही सहनशील हैं और अपने भक्तों कि समस्यायों और मजबूरियों को बखूबी समझते हैं | अब देखो न जब ऊपर वाले शर्मा जी वैष्णों देवी के दर्शन के लिये जाते हैं तो बगल वाले घूसखोर, दारूबाज, जुआड़ी और अव्वल दर्जे के महापापी टंडन जी टेंटुये से चपरासी से घूस में लिये हुये तीन हजार रुपये निकाल कर शर्मा जी को देकर उनकी जगह वैष्णों देवी की सुपर डीलक्स आरती फेरने को कह देते हैं | देवी माँ को भी पता है कि टंडन साहब पैसा कमाने में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास स्वयं दर्शन के लिये आने का समय नहीं है | टंडन साहब की मजबूरी समझते हुये देवी माँ उनकी डीलक्स आरती स्वीकार कर ही लेती हैं तभी तो टंडन जी की दौलत हिन्दुस्तान की जनसंख्या की तरह बढ़ती ही जा रही है | कौन बेवकूफ कहता है कि भारत की बढ़ती जनसंख्या एक अभिशाप है – इसी की बदौलत तो हम ‘बी. पी .ओ.’ और अब ‘एफ़ .पी.ओ.’ जैसी चीज़ों के सपने देख सकते है | खैर, मैंने सोच लिया है कि मैं ‘एफ़.पी.ओ.’ की एक ‘कंपनी’ खोलने जा रहा हूँ | ”


धपजी ने खुश होते हुये कहा, “तो शुरुआत मुझसे ही कर दो | कोई व्रत रखने वाला पकड़ कर लाओ | ”


मैंने कहा, “अभी तो अपनी ‘कंपनी’ का पंजीकरण तक नहीं हुआ है | खैर, इस बार ‘आउटसोर्सिंग’ खुद ही किये लेता हूँ – मतलब कि तुम्हारी जगह मैं खुद ही अपनी लम्बी उमर के लिये करवा चौथ का व्रत रख लेता हूँ | हाँ ये याद रहे कि इसके लिये तुम्हें दस अमरीकन डालर प्रति घंटा के हिसाब से ‘आउटसोर्सिंग’ की रोजगारी देनी पड़ेगी | ”


बस मुझे अपना पहला ग्राहक (क्लाईंट) मिल गया | मैंने अपना नाम अतुल से बदल कर ऐंथनी कर दिया और लग गया काम पर, यानि कि, व्रत पर | मेरा पूरा दिन बिना खाये पिये टी .वी . के सामने बिना सर पैर की छह या सात हिन्दी फिल्में देखते हुये कष्ट रहित बीत गया | धपजी ने भी हर्षोल्लास के साथ मेरे लिये ‘फ्रोज़ेन पिज़्ज़ा’ लाकर ‘फ्रिज़’ में रख दिया – आखिर मैं उनके पति की लम्बी आयु के लिये व्रत जो रखे हुये था | रात को गरम किये हुये ‘चीज़ पिज़्ज़ा’ और ‘डायट पेप्सी’ की एक बोतल से अपना व्रत तोड़ा और मन ही मन आज के व्रत के फायदे सोचे:


1. थोड़ा तो कैलोरी उपभोग कम हुआ | बढ़ती हुई तोंद ने भी दुआयें दी |

2. मैंने खुद की जिन्दगी थोड़ी बढ़ा ली |

3. पूरे 130 अमरीकन डालर की कमाई हो गयी |


और, सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि

4 . धपजी भी दिन भर प्रसन्नचित्त रहीं |


खैर, ये तो बीती हुई बात है | फ़िलहाल, मेरी ‘सिलिकॉन वैली’ के कुछ एक वी. सी . (वेंचर कैपिटलिस्ट) से बात चल रही है अपनी ‘एफ़. पी. ओ.’ कंपनी शुरू करने की | बात उनको भी जँच रही है और अगर सारे ग्रह एक सीधी कतार में आ कर खड़े हो गये तो अति शीघ्र ही आप सब मेरे नाम के पीछे ‘सी.ई.ओ.’ लिखा हुआ पायेंगे | अब, यदि आप लोग भी मेरे इस दुस्साहस में अपनी घूस या पसीने की कमाई का निवेष करना चाहते हैं तो बिना कोई विलम्ब किये अपनी मंशा टिप्पणी के जरिये यहाँ छोड़ दीजिये |


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- अतुल श्रीवास्तव

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