वाणी
- अतुल श्रीवास्तव
- May 19, 2020
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Updated: Aug 12, 2022

जब कोलाहल करे व्यथित मन,
चक्षु माँगे कुछ नींद के पल,
वाणी तुम्हारी सरस, आ जाये
बन वृष्टि का जल, नित्य चंचल।
तुमुल विषाद जब करे गर्जना,
शिथिल पड़ने लगे चेतना,
राग तुम्हारी मरु पर यूँ छाये,
मूर्छित धरा स्वयं शाद्वल बन जाये।
तिमिर-विरह डसने को व्याकुल,
झुलसाती मन बन कर बाहुल,
मलय बन जाये तब तेरा गान,
कभी भक्ति-ज्ञान, कभी मदिरा का पान।
चिर एकांत एक प्राचीर बना दे,
नीरवता को अभेद्य करा दे,
तब बोल तुम्हारे मन को भाये,
आशा की लता स्वयम उपजित हो जाये।
चंचल पुलकित मन जब झूम के गाये,
स्वर-लिप्त तुम्हारे बोलों का सानिध्य ये पाये,
आभार अतुलनीय, शब्दों के परे,
हृदय करबद्ध मात्र वंदन ही करे॥
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- अतुल श्रीवास्तव
तुमुल: प्रचंड
शाद्वल: मरु उद्यान
बाहुल: अग्नि
तिमिर: अंधकार
चिर: लम्बी, दीर्घकालीन
प्राचीर: चारदीवारी
सानिध्य: निकटता
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