top of page

आँधी

  • अतुल श्रीवास्तव
  • Jul 15, 2021
  • 1 min read

Updated: Mar 29, 2024



मुख़्तलिफ़ परिंदे न चहचहाते हैं इस दरख़्त पर,

न जाने तूने इसे कैसा हिला दिया।


जो बहता था अब तक सिर्फ तेरी रगों में,

वो जहर तूने हर शख्स को कैसे पिला दिया।


मर कर कभी न कोई होता है जिंदा,

तूने तो महिसासुर को फिर से जिला दिया।


चिंगारियाँ तो सुलगती थीं यहाँ सदियों से,

तेरी एक आँधी ने तो पूरा अंजुमन जला दिया।


मुख़्तलिफ़ - अनेक प्रकार के


****

- अतुल श्रीवास्तव

[फ़ोटो: डेथ वैली नेशनल पार्क, कैलीफॉर्निया]


1 Comment


Pra Sax
Pra Sax
Jul 15, 2021

अतुल, बहुत अच्छी पकड़ है उर्दू ज़ुबान पर भी!

Like

-अतुल श्रीवास्तव

bottom of page